1958 में नैनीताल के पास भवाली और घोड़ाखाल में हुई थी दिलीप कुमार की फिल्म की शूटिंग

July 9, 2021 | samvaad365

महान अभिनेता दिलीप कुमार ने लंबी बीमारी से जंग लड़ने के बाद 7 जुलाई को आखिरी सांस ली और 98 साल की उम्र में 58 साल तक भारतीय सिनेमा पर राज करने वाला ये सितारा अपनी अतुलनीय छाप छोड़कर सब को अल्विदा कह गया । दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा के वो अभिनेता थे जिनका नाम देश और विदेश में बहुत सम्मान के साथ लिया जाता रहा है।  फिल्मों में गंभीर रोल से सबका दिल जीतने के बाद दिलीप साहब ट्रैजिडी किंग के नाम से मशहूर हुए.  दाग, मुगल-ए-आजम, दीदार, तराना, देवदास, नया दौर, ज्वार भाटा, मधुमति जैसी फिल्मों ने उन्हें एक नई पहचान दी।दिलीप साहब का कद इतना बड़ा था की उनके निधन के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ-साथ पड़ोसी देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने भी उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया।दिलीप साहब का जन्म 11 दिसंबर 1922 को अविभाजित हिन्दुस्तान में हुआ था। उनका असली नाम यूसुफ खान था लेकिन एक प्रोड्यूसर के कहने पर उन्होंने फिल्मी पर्दे के लिए अपना नाम दिलीप कुमार रखा। दिलीप साहब ने आंग्रेजी हुकूमत से आजादी के लिए चले कई आंदोलनों में भी हिस्सा लिया था। एक बार पुणे के एक क्लब में अंग्रेजों के खिलाफ भाषण देने के जुर्म में अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें जेल में भी डाल दिया था।

 

दिलीप साहब की मशहूर फिल्म ‘मधुमती’ ने उत्तराखंड के खूबसूरत वादियों को लाखों लोगों तक पहुंचाया। 1958 में नैनीताल के पास भवाली और घोड़ाखाल में फिल्म की शूटिंग हुई थी।  मधुमती के बाद ही इस इलाके में कई बड़ी फिल्मों की शूटिंग भी हुई। हालांकी मधुमती की शूटिंग के दौरान नैनीताल में काफी कोहरा था जिससे उसका प्रिंट धुंधला नजर आता था। एडिटिंग के दौरान ये देखने के बाद मुंबई में सेट बनाकर 80 फीसदी शूटिंग दोबारा करनी पड़ी थी । आज दिलीप साहब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हर बड़ा नेता उन्हें अपना आदर्श मानता है। उनके निधन के बाद उनके आवास पर कई बड़े सितारों के साथ-साथ राजनीतिक हस्तियों का तातां लगा। औऱ पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई. दिलीप साहब को पद्म भूषण, दादासाहेब फाल्के और पद्म विभूषण जैसे सम्मानों से नवाजा जा चुका है. इतना ही नहीं पाकिस्तान भी उन्हें अपने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से नवाजा चुका है। यहां तक की उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने तक की मांग भी उठ चुकी है।दिलीप साहब का नाम सिर्फ भारतीय सिनेमा के इतिहास में ही नहीं बल्की देश के इतिहास में सवर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। उनके जाने से सिर्फ एक युग का अंत नहीं हुआ है. बल्की कई युगों को बनाने औऱ संवारने की कहानी का भी अंत हो गया है। अलविदा दिलीप साहब।

संवाद365,डेस्क

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