पहाड़ में स्वरोजगार के लिए 11 साल से मेहनत कर रहा शख्स सरकार की योजनाओं का लाभ ना मिलने से निराश

January 10, 2021 | samvaad365

कृषि बागवानी और पशुपालन के क्षेत्र में स्वरोजगार की आज अनेकों सम्भावनाएं मौजूद हैं और बहुत सारे उत्साही युवा इस क्षेत्र में बरसों से स्वरोजगार भी कर रहे हैं लेकिन सरकारी मदद न मिलने से वे अपने व्यवसाय को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं. कुछ ऐसे ही कहानी है सुनील भण्डारी की.

उत्तराखण्ड के पहाड़ी गाँवो में कृषि बागवानी और पशुपालन के क्षेत्र में स्वरोजगार की बेहतर सम्भावनाएं मौजूद हैं. अगर लग्न मेहनत और ईमानदारी से इस क्षेत्र में कार्य किया जाय तो यहां रोजगार की कोइ कमी नहीं. रूद्रप्रयाग के भटवाड़ी गाँव के सुनील सिंह भण्डारी वर्ष 2009 से डेरी का व्यवसाय कर स्वरोजगार कर रहे हैं.

सुनील का पूरा परिवार पिछले 11 वर्षों से हाड़तोड़ मेहनत कर अपने गांव में ही डेरी का कार्य कर रहा है। बाजार दूर होने के कारण सुनील भण्डारी एक एक किमी 38 रूपये प्रति लीटर की दर से वे उत्पादित दूध को डेरी विभाग को देते आ रहे हैं लेकिन बदले में उन्हें सरकारी मदद के रूप में आजतक किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पाया है. जिससे वे निराश हैं.

सुनील भण्डारी बीते 11 वर्षों से पशुपालन के साथ कृषि के कार्यों में भी बेहतरीन कार्य कर रहे हैं लेकिन विभागों के अनेकों चक्कर काटने के बाद भी उन्हें ना तो कृषि यंत्र मिल पा रहे हैं और नहीं डेरी व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ. हालांकि मुख्य विकास अधिकारी भरत चन्द्र भट्ट का कहना है कि सरकार योजनाएं सभी लोगों तक पहुँच रही हैं और वे उनका लाभ ले सकते हैं.

भले ही स्वरोजगार को बढ़ावा देने के उत्तराखण्ड सरकार ने अनेकों योजनाएं चला रखी हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि ये योजनाएं कागजों से निकलकर सुनील जैसे मेहनतकश काश्तकारों तक आखिर क्यों नहीं पहुँच पाती हैं. सरकारी तंत्र के इसी उदासीन रवैये के कारण लाॅकडाउन में पहाड़ आए अनेकों बेरोजगार युवा यहां स्वरोजगार करने का मन बनाने के बावजूद वापस प्रदेश लौट गए हैं. इससे समझा जा सकता है कि सरकारी नारों और हकीकत के बीच कितनी बड़ी खाई है.

(संवाद 365/कुलदीप राणा आजाद)

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