पर्यावरण से जुड़े मैती आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1994 में चमोली जिले के राइंका ग्वालदम में जीव विज्ञान के प्रवक्ता रहे कल्याण सिंह रावत ने की थी। उन्हें मैती आंदोलन के लिए 26 जनवरी को दिल्ली में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा जा रहा है।
मूल रूप से चमोली जिले के बैनोली गांव निवासी कल्याण सिंह रावत वर्तमान में देहरादून में रहते हैं। इनके दो बेटे हैं जो राजकीय सेवा में हैं। मैती के तहत जब किसी बेटी की शादी होती है, तो वह विदाई से पहले एक पौधा रोपती है।
पद्मश्री कल्याण सिंह रावत जी द्वारा चले जा मैती आंदोलन से प्रेरित होकर पौड़ी गढ़वाल में तमलाग गाँव के कवि गीतकार प्रदीप रावत खुदेड़ ने अपनी भांजी संगीता के विवाह में विदाई के वक्त खेत में पेड़ लगाकर इस आंदोलन की शुरूआत गगवाड़स्यूँ पट्टी में की,
गौतलब है कि पद्मश्री कल्याण सिंह रावत जी द्वारा चलाये जा रहे इस आंदोलन में जब दुल्हन की विदाई होती हैं तो वर वधु अपने मैत के आँगन या खेत में एक पेड़ समवोण के रूप में लगाते हैं जिसकी देख- रेख वधु के मायके वाले करते हैं, अभी तक उत्तराखंड में हजारों जोड़े मैती आंदोलन को अपना समर्थन दे चुके हैं ।
संवाद 365 , डेस्क
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