अद्भुत है जोशीमठ का नृसिंह मंदिर, सृष्टि के विनाश से माना जाता है संबंध

September 13, 2020 | samvaad365

जोशीमठ: उत्तराखंड के जोशीमठ में भगवान नृसिंह का भव्य मंदिर स्थित है। भगवान व‍िष्‍णु के चौथे अवतार नृस‍िंह के बारे में तो सभी जानते हैं, उत्‍तराखंड के जोशीमठ में भगवान नृसिंह के इस मंदिर का संबंध सृष्टि के व‍िनाश से माना जाता है। सामान्‍य द‍िनों में यहां स्‍थाप‍ित प्राचीन नृसिंह मंदिर में लोगों का सालभर आना-जाना लगा ही रहता है। इस मंदिर की विशेषता ये है कि जाड़ों के मौसम में यहां भगवान बदरीनाथ इसी मंद‍िर में व‍िराजते हैं। यही उनकी पूजा-अर्चना होती है। मान्‍यता है कि जोशीमठ में नृसिंह भगवान के दर्शन क‍िए बिना बदरीनाथ धाम की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती। इसलिए मंदिर को नृसिंह बदरी मंदिर कहा जाता है।

राजतरंगिणी के अनुसार 8वीं सदी में कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तापीड़ द्वारा अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान प्राचीन नृसिंह मंदिर का निर्माण उग्र नृसिंह की पूजा के लिये हुआ जो विष्णु का अवतार है। इसके अलावा एक और मत मिलता है कि स्‍वर्गरोहिणी यात्रा के दौरान पांडवों ने इस मंदिर की नींव रखी थी। एक अन्‍य मत के अनुसार इसकी स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की क्योंकि वे नृसिंह भगवान को अपना ईष्ट मानते थे। मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी भी स्थित है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार नृसिंह बदरी मंदिर में स्‍थापति भगवान नृसिंह की प्रतिमा की बायीं भुजा का संबंध सृष्टि के अंत से संबंध‍ित है। कथा मिलती है कि प्रतिमा की बायीं भुजा धीरे-धीरे पतली होती जा रही हे। लेकिन जिस द‍िन यह पूरी तरह से गायब हो जाएगी.  वह द‍िन सृष्टि के अंत यान‍ि क‍ि व‍िनाश का द‍िन होगा। बता दें क‍ि मंद‍िर में स्‍थापित भगवान की यह स्‍वयंभू प्रतिमा शालिग्राम पत्‍थर से बनी है। स्‍थानीय लोगों के मन में यह विश्‍वास है कि जिस दिन मूर्ति की बाईं कलाई टूटकर गिर जाएगी उस दिन नर और नारायण पर्वत ढहकर एक हो जाएंगे और बदरीनाथ धाम का मार्ग सदा के लिए अवरुद्ध हो जाएगा।

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संवाद365/प्रदीप भंडारी

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