रुद्रप्रयाग: बिच्छू घास यानी कि कंडाली को छूने से ही करंट जैसा अनुभव होता है, लेकिन यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है कई बीमारियों के साथ ही शरीर को तंदरूस्त रखने में भी वरदान साबित होता है, उत्तराखंड के हिमालयी इलाको में पाये जाने वाले इस पौधे का तना-पत्ती से लेकर जड़ तक हर हाल में काम आता है. पहाड़ों में कंडाली के नाम से विख्यात इस घास को पहले सब्जी बनाने से लेकर घरेलु औषधीयोें के रूप में प्रयोग में लाया जाता था, लेकिन एंटीबायोटिक दवाईयों के इस दौर में इस घास की उपयोगिता बिल्कुल शून्य हो चुकी है. भले ही पूर्व में तत्कालिक कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत ने भांग और कंडाली की खेती को बढ़ावा देने के अनको घोषणायें तो की हैं लेकिन परिणाम विफल ही साबित रहा। जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री में कई बार इसकी उपयोगिता को लेकर कई योजनायें शुरू करने की बातें कह चुके हैं धरातल पर अब तक ये योजनायें नहीं उतर पाई हैं.
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दरअसल यह मुख्य रूप से हमारे लिए एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है, इस पौधे के उपयोगी हिस्सों में इसके पत्ते, जड़ और तना होते हैं, इसमें आइरन, कैल्शियम और मैगनीज प्रचुर मात्रा में होता है, कंडाली जैसी कई जड़ी बूटियों से पहाड़ भरा पड़ा है, लेकिन स्पष्ट और कारगर नीति न बनने के कारण ये औषधीय पौधे अब अपने अस्तित्व को ही खो रहे हैं, जरूरत है तो बस इनके लिए धरातल पर काम करने की जिससे न सिर्फ किसानों को लाभ हो बल्कि इन पौधों का अस्तित्व भी बना रहे.
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संवाद365/कुलदीप राणा