देहरादून की नौटियाल कृत्रिम अंग कल्याण समिति ने बदली दिव्यांगों की जिंदगी

March 3, 2019 | samvaad365

देहरादून की नौटियाल कृत्रिम अंग कल्याण समिति एक ऐसी समिति है जो असक्षम लोगों को आगे बढ़ाने का काम करती है। देश भर में कई ऐसे दिव्यांगजन हैं जिनमें प्रतीभा तो हैं लेकिन उस प्रतीभा को अभिव्यक्त करने का कोई मंच नहीं है।  लगभग 2-5 करोड़ भारतीय लोकोमीटर विकृति से परेशान है इसके लिए लगभग हजारों समर्पित प्रोफेशनल एवं कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है।

ऐसे में नौटियल कृत्रिम अंग कल्याण समिति ने अपने प्रयासों के जरिए दिव्यांगजनों को एक नई ऊर्जा प्रदान की है। यह प्रयास इस दिशा में एक सूक्ष्म एवं नेक शुरूआत है। इस कार्य को करने के लिए संस्थान पूर्ण रूप से आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करता है, संस्थान नौटियाल कृत्रिम अंग केन्द्र एवं नौटियाल आर्थोटिक प्रोस्थेटिक पुनर्वास केन्द्र के संसाधनों का भी उपयोग करता है। संस्थान द्वारा कराई गई गौरीकुण्ड से केदारनाथ की 42 किमी0 पैदल यात्रा विकलांगजनों के लिए एक ऐसा उदाहरण है। जो दिव्यांगों को प्रेरित करने के मिशन के रुप में कार्य करता है।

ये यात्रा इन दिव्यांगों को कृत्रिम पैरों के माध्यम से कराई गई, ताकि उनमें आत्मविश्वास का संचार किया जा सके। इस संस्था के अध्यक्ष हैं विजय कुमार नौटियाल, जिन्होंने सामाजिक एवं आधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार के अधीन संस्थान पं0 दीन दयाल उपाध्याय जन विकलांग संस्थान में कृत्रिम अंग निर्माण, पोलियो, लकवाग्रस्त, जन्म से विकलांग, मुड़े हुए हाथ-पैर को सीधा कर उन्हें सामान्य अवस्था में लाने और शारीरिक विकृति को रोकने वाले कई उपकरणों का अध्ययन किया। इस क्षेत्र में उन्होंने 1996 में डिप्लोमा इन प्रौस्थेटिक -आर्थोटिक इन्जीनियरिंग सम्पन्न किया और कोर्स खत्म करने के बाद देहरादून में साल 1996 में नौटियाल कृत्रिम अंग केन्द्र की स्थापना का काम शुरू किया। 1996 से अब तक लगातार तत्परता के साथ वो इस क्षेत्र में कार्यरत हैं। नौटियाल कृत्रिम अंग केन्द्र में उत्तराखण्ड के विभिन्न जनपदों सहित दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, पंजाब व हरियाणा राज्य में विगत 18 वर्षों से स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से 20 हजार से अधिक मरीजों को कृत्रिम अंग, पोलियों, कैलीपर, आदि प्रदान कर उनके शारीरिक पुनर्वास में पूर्ण योगदान दिया है। कह सकते हैं कि ये संस्थान उन दिव्यांगों के लिए एक नई जिंदगी की तरह है जो खुद से भरोसा को चुके हैं।

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देहरादून/पुष्पा सिंह पुण्डीर

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