लोग इस बात को यूं ही नहीं कहते हैं, हमारी सरकार ने अपने सांस्कृतिक परिवेश को पुनः स्थापित करने के लिए चैतोला योजना प्रारंभ की, जिसको फूलदेई-छम्मा देई त्यौहार के साथ और घुघूती न बासा जैसे मार्मिक गीतों के साथ जोड़कर यह निर्णय लिया कि जो हमारे गांव की बेटी और बहू, उत्तराखंड से बाहर रह रहे हैं, वो यदि अपने गांव में लौटकर के आते हैं तो राज्य सरकार उस बेटी और बहू को ₹500 और एक साड़ी चैतोले के रूप में भेंट करेंगी। हमारे गांवों में जो ग्रामीणत्व व अपनापन था, हमारी संस्कृति की झलक थी वो धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है, उसकी पुनर्स्थापना में जागर और ढोल-दमुवा को महत्व देना और चैतोले की भेंट देना, फुलदेई जैसे त्योहारों को राज्य सरकार की तरफ से प्रोत्साहित करना एक बड़ा फैसला था, था इसलिए कह रहा हूंँ हमारे बाद आने वाली सरकार ने हमारे इस कार्यक्रम को बंद कर दिया। आज यदि कोई बेटी अपने गांव लौट भी रही है तो उसका स्वागत चैतोले की भेंट के साथ नहीं हो रहा है। हमने चैत के महीने की यह चैतोले की परंपरा को प्रारंभ कर जो प्रवासी भाई-बहनों को गांव लौटो की मुहिम चलाई थी, चलो गांव की ओर उसको इससे बड़ा झटका लगा है। इसीलिये मैं कहता हूंँ कि,
“तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा
अब उत्तराखंड नहीं आएगी, भाजपा दोबारा”
याद रखिएगा 14 फरवरी, 2022
जय हिंद, जय उत्तराखंड-जय उत्तराखंड”।
संवाद365,डेस्क
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