आज उत्तराखंड में लोग स्वरोजगार कर मिसाल कायम कर रहे हैं । इन्हीं में से एक हैं रूद्रप्रयाग की रहने वाली बबीता रावत जिसने स्वरोजगार कर कामयाबी का एक बेहतर उदाहरण पेश किया है । बबीता रूद्रप्रयाग के छोटे से गांव सौड़ उमरेला में रहती है । वो अपने गांव में खेती और मशरूम उत्पादन करती है । खेती, मशरूम और दुग्ध उत्पादन को रोजगार का जरिया बनाकर वो हर महीने 15 से 20 हजार की कमाई कर रही हैं। 7 भाई-बहनों के परिवार में बबीता पांचवे नंबर पर हैं। उनके पिता सुरेंद्र सिंह रावत की तबीयत खराब रहती है, इसलिए परिवार को संभालने की जिम्मेदारी बबीता के कंधों पर है।
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बबीता ने 20 साल की उम्र से खेती का कार्य शुरू किया।स्कूल के दिनों में बबीता हर रोज सुबह सवेरे अपने खेतों में काम करने के बाद 5 किमी पैदल चलकर स्कूल जाती थीं और साथ में दूध भी बेचती थीं। धीरे-धीरे वो सब्जी उत्पादन से जुड़ीं और अब वो मशरूम का उत्पादन भी कर रही हैं। इस मेहनती बेटी ने खेतों में काम कर के न सिर्फ पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठाई, बल्कि अपनी पढ़ाई का खर्च भी वहन किया। वो खेतों में खुद हल लगाती थीं। खेती से जो पैसे जुटे, उससे बबीता ने चार बहनों की शादियां भी संपन्न करवाई। बबीता अब गांव-गांव जाकर महिलाओं को स्वरोजगार के प्रति जागरूक करती हैं। उनके कार्यो को देखते हुए राज्य सरकार ने भी बबीता रावत को प्रतिष्ठित तीलू रौलेती पुरूस्कार से सम्मानित किया है। बबीता को जिला स्तर पर भी कई बार सम्मानित किया जा चुका है। आर्थिक तंगी के बाद भी बबीता ने हार नहीं मानी, और मेहनत करती रहीं। आज उनकी कहानी पहाड़ की महिलाओं और युवतियों के लिए प्रेरणा बन गई है।
संवाद365,डेस्क
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