बागेश्वर: उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में बरसात के मौसम में नदियों में आने वाली बाढ़ और भूस्खलन लोगों की मुसीबतें बढ़ कर रख देते हैं, इस मौसम में कई जगहों पर भूस्खलन से सड़कें बाधित हो जाती हैं तो कई जगहों पर पुल लेकिन ऐसी भी जगहें हैं जहां पर कई सालों तक व्यवस्था पटरी पर नहीं लौट पाती है। बागेश्वर के कपकोट ब्लाॅक में शामा उप तहसील में रामंगा नदी पर बना पुल आज से करीब तीन साल पहले आपदा की भेंट चढ़ गया था। तब से लेकर आज तक इस पुल का निर्माण नहीं हो पाया। दो जिलों को आपस में जोड़ने वाला यह पुल बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिले के लोनिवि में तालमेल नहीं होने से नहीं बन पाया है। आज भी यहाँ ग्रामीण मज़बूरी में ट्राली में बैठकर ही नदी पार करते हैं।
तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि कैसे उफनती रामगंगा के उपर छोटी सी ट्राॅली के जरिए ग्रामीण इस नदी को पार करते हैं। वहीं पूर्व विधायक कपकोट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने जल्द विभाग से पुल निर्माण कराने की मांग की है। पूर्व विधायक फर्स्वाण और पूर्व जिला पचायत अध्यक्ष हरीश ऐठानी ने रामगंगा घाटी का भ्रमण किया। पूर्व विधायक ललित फस्र्वाण का कहना है कि रामगंगा नदी में उन्होंने दो झूला पुल बनाए हैं। उन्होंने अभी तक पुल न बनने के लिए वर्तमान विधायक को जिम्मेदार ठहराया है। सिर्फ बागेश्वर की ये स्थिति नहीं है बल्कि दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों का हाल अक्सर कुछ इसी तरह का रहता है, इन इलाकों में एक तो आपदा का खौफ है तो वहीं आपदा से हुआ नुकसान भी सालों तक भरा नहीं जाता।
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संवाद365/हिमांशु गढ़िया