रुद्रप्रयाग: केदारनाथ धाम में मंदाकिनी और सरस्वती नदी के बीच में जो करीब 4 सौ नाली भूमि है वहीं पर केदारपुरी बसी है, 2013 की आपदा से पूर्व वहां बाबा केदारनाथ सबसे बड़े भूमिधर हुआ करते थे। केदापुरी में बाबा केदारनाथ के नाम पर 21 नाली जमीन थी, जबकि केदारनाथ मंदिर समिति के नाम 45 नाली भूमि लीज के रूप में दर्ज थी, लेकिन 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ धाम को राज्य सरकार ने पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया। स्थिति यह है कि बीते सात वर्षों से बाबा केदारनाथ की व्यवस्थाओं को देखने वाले पहले श्री बद्री केदार मंदिर समिति और अब श्राइन बोर्ड ने भी बाबा केदारनाथ की भूमि को वापस दिलाने का साहस नहीं दिखाया। नतीजन आज केदारनाथ मंदिर के पास भूमि न होने से कई व्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। अब केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर केदारनाथ की जमीन केदारनाथ के नाम करने की मांग की है, ताकि मंदिर अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपना विकास कर पाये।
केदारनाथ में अव्यवस्थाओं का आलम यह है कि बिना भूमि के वर्ष 2013 से अब तक भोग मंडी का निर्माण नहीं हो पाया है, जिस कारण बाबा केदारनाथ को जो नित भोग लगता है, उसमें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। केदारनाथ के पुजारी और वेद पाठियों के आवास नहीं बन पायें हैं, जिलाधिकारी वंदना सिंह ने कहा कि केदारनाथ की भूमि देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से मंदिर को हस्तांतरित करने के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, जो विचाराधीन है। शासन से मंजूरी मिलने के बाद ही अग्रिम कार्यावाही की जायेगी।
केदारनाथ में भले ही मास्टर प्लान के तहत केदारपुरी को सरकार भव्य रूप देने का कार्य कर रही हो. लेकिन जिस केदारनथ के मंदिर से प्रसिद्ध यह धाम है, आज उसी मंदिर की आवश्यकताओं पर सरकार और जिला प्रशासन ने नजरें फेर रखी हैं। जबकि केदारनाथ की व्यवस्थाओं को दुरूस्त करने का जिम्मा सम्भाले मंदिर समिति और देवस्थानम बोर्ड भी इस गम्भीर विषय पर मौन साधे हुए हैं.
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संवाद365/कुलदीप राणा