रुद्रप्रयाग: उत्तराखण्ड में बीजेपी सरकार के जीरो टॉलरेंस में नौकरशाह और जनप्रतिनिधि मिलकर सरकार की मंशा को कैसे पलीता लगा रहे हैं इसकी बानगी पोखरी विकासखण्ड कार्यालय में देखी जा सकती है. जहाँ ग्रामीणों को रोजगार मुहैया करवाने के लिए बनाई गई महत्वकांक्षी योजना मनरेगा में ही भारी भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा है. विकासखण्ड पोखरी के खन्नी गाँव में गौशाला मरम्मतीकरण योजना में भारी भ्रष्टाचार देखने को मिल रही है. दरअसल वित्तीय वर्ष 2018-19 में खन्नी गाँव के 15 परिवारों को गौशाला मरम्मतीकरण कार्य के लिए चिन्हित किया गया था। जिसके तहत लाभार्थि को मनरेगा श्रम और सामग्री सहित 44 हजार की धनराशि दी जानी थी। लेकिन दो वर्ष बीत जाने के बाद भी लाभार्थियों को पूरी धनराशी नहीं मिली है. हर लाभार्थि को सिर्फ पंद्रह हजार, सातरह हजार और किसी को 23 हजार की ही राशि मिली है. जबकि विभाग द्वारा योजना का सिलापट्ट गौशालाओं पर लगाया जा चुका है जिसमें 44 हजार की पूर्ण राशि दर्शायी गई है। सवाल यह है कि जब लाभार्थी को पूरी धनराशि मिली ही नहीं तो सिलापट्ट पर दर्शायी गई धनराशि कौन डकार गया है?
दरअसल लाभार्थियों को कहा गया था कि वे गौशाला का मरम्मतीकरण कार्य आरम्भ कर कर श्रमिकों की हाजिरी और सामग्री का बिल विकाखण्ड कार्यालय को उपलब्ध करवाये. इस पूरे कार्य की देख-रेख और वित्त आवांटन की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान के सहयोग से ग्राम विकास अधिकारी और ग्राम पंचायत विकास अधिकारी की होती है. अधिकारियों के कहने पर लाभार्थियों ने गौशाला मरम्मतीकरण कर जॉब कार्ड के अनुसार श्रमिकों की हाजरी विकासखण्ड कार्यालय को भेजी लेकिन ढेड साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी श्रमिकों का पूरा पैसा खाते में तो नहीं आया लेकिन विभाग ने यह फाइल बंद जरूर कर दी. गौर करने वाली बात यह है कि जब लाभार्थी ने सामग्री का बिल विभाग को दिया ही नही ंतो फिर विभाग ने बिना बिल के दुकानदार को भुगतान कैसे कर लिया? क्योंकि जो सिलापट्ट विभाग द्वारा कार्यस्थल पर लगाये गए हैं उन पर पूर्णतः किस-किस को कितनी धरनाशि गई है वह दर्शाया गया है.
सीधे शब्दों में अगर कहें तो सिलापट्ट और वास्तविक आँकड़े कहीं भी मेल नहीं खा रहे हैं. जब हमारी टीम पूरे मामले की पड़ताल करने विकाखण्ड कार्यालय पोखरी पहुँची तो पहले विकासखण्ड कार्यालय में अधिकारियों द्वारा हमें कई दिनों तक गुमराह किया गया और बाद में खण्ड विकास अधिकारी द्वारा दास्तावेज छुपाये गए और अधिकारी गोल मोल जवाब देकर पूरे मामले में पर्दा डालने की कोशिस कर रहे थे.
बहरहाल योजना विभागीय कागजों, कार्यस्थल पर लगे सिलापट्टों और श्रमिकों के खातों में आई धनराशि के अलग-अलग आँकड़ों से तो इतना स्पष्ट हो गया है कि विभाग में बैठ भ्रष्ट अधिकारियों ने गरीबों के हित पर अपनी रोटी पकाई है. पोखरी विकासखण्ड में अधिकारी जनता के प्रति कितने लापरवाह और गैरजिम्मेदार हैं इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब वे मीडिया को ही कहीं दिनों तक घुमा रहे है तो फिर आज जनमानस की यहां कहां तक सुनवाई होती होगी। अब देखना ये है कि जीरो टॉलरेंस के दावे करने वाली सरकार ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई करती है या नहीं.
(संवाद365/कुलदीप राणा आजाद)
यह भी पढ़ें-पीआरएसआई, देहरादून चैप्टर अध्यक्ष अमित पोखरियाल को मिला समाजिक योगदान में अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार