सुधीर खण्डूड़ी, जिनहोंने कभी भी यह दिखावा नहीं किया कि, वह मुख्यमंत्री के भाई हैं: ‘शीशपाल गुंसाईं’ की कलम से

April 11, 2021 | samvaad365

1975 में हेमवती नंदन बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे उसी साल उनका भांजा सुधीर खण्डूरी पौड़ी से नीचे उतर कर देहरादून आया। सुधीर जी ने इंटर पास कर लिया था।अब वह नौकरी तलाश में थे। मुख्यमंत्री मामा से मिलना जुलना तो होता ही था उनके साथ एक दिन वाराणसी वाले वैद्यनाथ जी बैठे हुए थे तो उन्होंने उन्हें देहरादून में वैद्यनाथ एजेंसी खोलने का गुलाबी सपना दिखाया। उन्होंने छूटते ही कहा कि, देहरादून क्यों ? मुझे पौड़ी में एक दुकान दिला कर, इस एजेंसी को दिलवा दें मैं अपना जीवन पौड़ी में ही व्यतीत कर लूंगा। वह इस शहर बेहद प्यार करते थे आखिर उनके पिता भी देहरादून छोड़कर पौड़ी में ही जा बसे थे। देहरादून में 1975 में दुकान मिलनी भी बहुत कठिन थी। लेकिन देहरादून में ही दुकान खोलने की सहमति बनी,दो-तीन दिनों तक देहरादून के डीएम ने दुकानों को घूमने के लिए खाक छान मारी थी।फिर जाकर कनॉट पैलेस में एक दुकान पर सहमति बनी वहां सुधीर खण्डूरी ने वैद्यनाथ एजेंसी 12 साल तक चलाई।

फिर समय बदला, इस दुकान की जगह फर्नीचर खोलने पर विचार हुआ। तब देहरादून शहर में छात्र नेता के रूप में विवेक खण्डूरी सिक्का जमा चुके थे। विवेक खण्डूरी, सुधीर जी के परम मित्र थे छात्र नेता विवेक खण्डूरी ने पीएनबी से ₹25 हज़ार का ऋण सुधीर को दिला दिया था। फिर 25 हज़ार से उन्होंने तरक्की की। बढ़ते बढ़ते उन्होंने इंदिरा नगर में फर्नीचर की फैक्ट्री खोली। एक बार वह अच्छे खासे फर्नीचर के सप्लायर थे।

2007, 2011 में उनके बड़े भाई मेजर जनरल बीसी खण्डूड़ी उत्तराखंड प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो वह चकराता रोड से कई बार सचिवालय, विधानसभा कार्यालय के लिए गुजरते थे। क्योंकि दूसरी बार उनके मुख्यमंत्री बनने पर उनका आवास यमुना कालोनी में था। यमुना कालोनी का रास्ता चकराता रोड होकर ही जाता है। हालांकि देहरादून घंटाघर से चकराता 100 किलोमीटर दूर है लेकिन अंग्रेजों ने इस रोड का नाम चकराता रोड रखा था। इसलिए इसे चकराता रोड ही कहते हैं.

बीच में कनॉट प्लेस पड़ता है वहीं सुधीर जी की दुकान अभी भी है। लेकिन जनरल साहब की कारों का काफिला का इस दुकान के आगे ब्रेक नहीं लगा। वह सरकार चला रहे थे वह फर्नीचर बेच रहे थे काम अपना -अपना। हालांकि घर में आना -जाना होगा। सुधीर जी चार बहनों और चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। लेकिन उन्होंने कभी भी यह नहीं कहा कि, वह मुख्यमंत्री के भाई हैं वह साधारण तरीके से जीवन जीते हैं। 1 साल से उनकी दुकान कोविड -19 के कारण बंद है। बेटा -बेटियां बेंगलुरु में जॉब में है। पहले वह खुड़बुडा में रहते थे। अब चमन विहार में रहते हैं। देहरादून में घनानंद खण्डूड़ी की फैमली ट्री के इतिहास के बारे में मिलना पड़ा। जब पौड़ी से हमारे जागरूक मित्र अद्वैत बहुगुणा उनके दादा का नाम बता रहे थे, उसमें मिलान नहीं हो रहा था। फिर सही जगह जाना पड़ा। लेकिन उनका दादा का न्यू रोड़ का घर मेरी खोज है। लेकिन अद्वैत बहुगुणा जी यदि अगर बीच में मेरी खण्डूरी परिवार की किस्तों में एक लाइन न लिखते तो मैं शायद ही वहां जाता। लेकिन उनके घर जाकर मन प्रशन्न हुआ। जनरल खण्डूड़ी यहाँ कभी कभी आते हैं। उन्होंने अपने मामा एचएन बहुगुणा के राजनीतिक किस्से सुनाये।

(संवाद 365/ शीशपाल गुंसाईं)

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