चमोली: 2013 की जल प्रलय में नारायणबगड के दोनों छोरों के दर्जनों गांवों को जोड़ने वाला पिण्डर नदी पर बना झूला पुल आपदा की भेंट चढ़ गया था। इसके स्थान पर वर्ल्ड बैंक ने उत्तराखंड डिजास्टर रिकवर प्रोजेक्ट के तहत 8 करोड़ रुपए की लागत से हल्के वाहनों के लिए 2017 से 2019 के बीच नया झूला पुल तो बनाया परंतु इसके दोनों तरफ एप्रोच रोड नहीं बनाई, और लोनिवि थराली को हस्तांतरित कर दिया। जिस कारण लोगों को आवागमन के लिए एक कीलोमीटर से अधिक दूरी का चक्कर लगा कर नारायणबगड-परखाल मोटर पुल से होकर गुजरना पड़ रहा है। यहीं नहीं इस झूला पुल के ठीक ऊपर राजकीय बालिका इंटर कॉलेज है। स्कूल की छात्राएं कम समय में स्कूल पहुंचने के लिए यहां से जान जोखिम में डालकर पहाड़ी उबड़खाबड़ गधेरे से होकर जाने के लिए मजबूर हैं।
बरसात के समय बरसाती नाले कभी भी स्कूली छात्राओं के लिए मुसीबत के सबब बन सकते हैं। इस झूला पुल से हल्के वाहनों के लिए एप्रोच रोड बन जाने से बाजार में जाम की समस्या से भी निजात मिल सकेगी। इस झूला पुल के समीप ही नारायणबगड गांव भी है। कुछ समय पहले ग्रामीणों ने अपने संसाधनों से पैदल आवागमन के लिए रास्ता बनाया है परंतु खतरनाक चट्टान और नीचे पिण्डर नदी की खाई के भय से बहुत ही कम लोग यहां से आवागमन कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि रास्ते पर बिना रेलिंग के हमेशा जानमाल का खतरा बना रहता है। इसलिए उंहे लंबी दूरी तय करके मोटर पुल से आना जाना पड़ता है। लोनिवि निर्माण खंड थराली के अधिशासी अभियंता मूलचंद गुप्ता का कहना है कि जब उनके विभाग को झूला पुल हस्तांतरित किया गया तो उंहोने भी इसके एप्रोच रोड़ की बात रखी थी। उन्होंने बताया कि तब वर्ल्ड बैंक ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि एप्रोच रोड़ बनाना उनके अनुबंध का हिस्सा नहीं है। अभी भी नारायणबड की जनता को इस का इंतजार है कि कब ये पुल बन पायेगा। विकास तो रहा दूर अभी भी क्षेत्र में जब बारिश का मौसम होता है तो लोगो में डर का माहौल बना रहता है।
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संवाद365/पुष्कर नेगी