प्रथम विश्व युद्ध में शहीद बीसी गब्बर सिंह नेगी को श्रद्धांजलि

March 11, 2020 | samvaad365

टिहरी: मंगलवार को प्रथम विश्व युद्ध के नायक शहीद बीसी गब्बर सिंह नेगी का शहादत दिवस है। इसी दिन वे  प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुए थे और उनकी वीरता और शौर्य का लोहा पूरी दुनिया ने माना था।  वीरता के लिए उन्हें उस समय का विश्व का सर्वोच्च सेना सम्मान विक्टोरिया क्रॉस मरणोपरांत प्रदान किया गया था। सेना में जब भी शौर्य की चर्चा की जाती है तो बीसी गबर सिंह  नेगी का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। आज उन्हें याद करने का दिन हैं।  नई पीढ़ी को उनके  जीवन कर्म के बारे में पता नहीं है तो मैं इस पोस्ट के माध्यम से उनके  जीवन कर्म के बारे में संक्षिप्त में जानकारी दे रहा हूं। सबसे पहले तो हमें उनका नाम सही लिखना हुआ जानना चाहिए।  मैंने देखा है कि बहुत सारे लोग उनके नाम को गबर सिंह की जगह गब्बर सिंह लिखते हैं जो कि गलत है उनका सही नाम गबर सिंह नेगी था।

शहीद गब्बर सिंह नेगी का परिचय

शहीद गब्बर सिंह नेगी का जन्म टिहरी जनपद के चंबा प्रखंड के मंजूङ गांव में 21 अप्रैल 1895 हुआ था इनके पिता बद्री सिंह नेगी एक साधारण किसान थे और माता सावित्री देवी ग्रहणी थी। छोटी उम्र में ही पिता की मृत्यु के होने के कारण घर की सारी जिम्मेदारी इनके ऊपर आ गई लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और  वर्ष 1911 में इन्होंने टिहरी  नरेश के प्रतापनगर स्थित राजमहल में नौकरी करनी शुरू कर दी।  1 साल बाद 1912 में इनकी शादी मखलोगी  पट्टी के छाती गांव की सत्तूरी देवी से हुई। गबर सिंह राजमहल में नौकरी तो कर रहे थे लेकिन उनका वहां मन नहीं लग रहा था वे फौज में भर्ती होना चाहते थे इसलिए मखलोगी  पट्टी में केवल सितंबर 1913 तक की नौकरी कर पाए। ठीक उसी दौरान प्रथम विश्वयुद्ध की आशंका से फौज में भर्ती होने का दौर शुरू हुआ। गबर सिंह को शुरू से ही फौजी वर्दी व सेना में भर्ती होने का लगाव था।  वह इसी मौके की तलाश में थे वह सेना में भर्ती होने के लिए लैंसडाउन जा पहुंचे और अक्टूबर 1913 में गढ़वाल रेजीमेंट की 2 / 39 बटालियन में बतौर राइफलमैन भर्ती हुए।

गब्बर सिंह नेगी और प्रथम विश्व युद्ध

गब्बर सिंह को सेना में भर्ती हुई कुछ ही महीने बीते थे कि अंग्रेजों ने भारतीय सेना को यूरोपीय मोर्चे पर तैनात करने का निर्णय लिया जिसकी जिम्मेदारी गबर सिंह की रेजीमेंट को दी गई। समुद्री मार्ग के रास्ते भारतीय सैनिक भेजे गए। युद्ध में तेजी आ रही थी और हर दिन सैकड़ों की संख्या में सैनिक मारे जा रहे थे। 2 सितंबर 1914 को गढ़वाल रेजीमेंट ने यूरोप के लिए प्रस्थान किया और वहां युद्ध में बैठ डट गई। धीरे-धीरे युद्ध तेजी पकड़ रहा था न्यू चैपल  फ्रांस का युद्ध ऐतिहासिक था सामरिक दृष्टिकोण से यह लिली के बड़े नगर का प्रवेश द्वार था वहां पर जर्मन सेनाओं ने 4 मील से अधिक का अभिध मोर्चा बना लिया था।

अभी तक जर्मन सेना ब्रिटिश सेना पर हावी थी ब्रिटिश सेनापति चिंतित है कि आखिरी युद्ध कैसे जीता जाए।  काफी सोच-विचार के बाद ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने युद्ध की अग्रिम मोर्चे पर गढ़वाल बटालियन को भेज दिया। 10 मार्च 1915 की प्रातः कालीन बेला पर  चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ था ब्रिटिश सैनिक अधिकारी और गढ़वाल बटालियन के बहादुर सैनिक आगे बढ़े। दुश्मन की गोलाबारी के कारण भारी संख्या में सैन्य अधिकारियों सैनिक मारे गए । इस युद्ध में 250 सैनिक तथा 20 अधिकारी शहीद हुए। मोर्चे पर मशीन गाने कहर बरपा रही थी जर्मन सेना ने  दुर्ग खड़ा कर रखा था और चारों और  कांटेदार तार भी विछा रखे थे। गढ़वाली वीर सैनिक जय बद्री विशाल के उद्घोष के साथ आगे बढ़े और अनेक बाधाओं को पार कर जर्मन सेना पर टूट पड़े। इसी दौरान टुकड़ी का नेतृत्व कर रहा है नायक शहीद हो गया।

उनके स्थान पर गब्बर सिंह ने टुकड़ी का नेतृत्व किया और वह दुश्मन की की पोस्ट में घुस गए उन्होंने अपनी रायफल से जर्मन सेना के सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया मशीनगने आग उगल रही थी जब उनकी राइफल खाली हो गई तो उन्होंने दुश्मनों की मशीनगन छीनकर उन पर ही गोलियां दागनी शुरू कर दी गबर सिंह ने न केवल जर्मन सैनिकों को मार गिराया बल्कि सैकड़ों सैनिकों उनके सैकड़ों सैनिकों को बंदी भी बना दिया। इस युद्ध में वह दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।  यूसी तुम्हें ब्रिटिश सेनानी जीत हासिल की और गढ़वाल राइफल के जवान गबर सिंह नेगी को मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया जब गबर सिंह शहीद हुए तो उस समय उनकी उम्र मात्र 20 साल थी। ब्रिटिश  ब्रिटिश सरकार की ओर से सन 1925 में चंबा नगर की चौराहे में शहीद का स्मारक बनाया गया।  जहां हर वर्ष उनकी शहादत दिवस और जन्मदिवस पर सेना के जवान उन्हें श्रद्धांजलि देने आते हैं।

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संवाद365/बलवंत रावत

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