पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली

December 25, 2019 | samvaad365

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का नाम भला कौन नहीं जानता. पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 में गढ़वाल के मासी गांव में हुआ था. 3 सितंबर 1914 को चंद्र सिंह सेना में भर्ती हुए. यह वह समय था जब प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था. 1 अगस्त 1915 को चंद्र सिंह अन्य गढ़वाली सैनिकों के साथ मित्र राष्टों की ओर से यूरोप के मध्य पूर्वी क्षेत्र में भेज दिए गए. चंद्र सिंह ने 1918 की बगदाद की लड़ाई में भी हिस्सा लिया.

प्रथम विश्व युद्ध के बाद चंद्र सिंह गढ़वाली महात्मा गांधी के भी संपर्क में आए. ये वो दौर था. जब ब्रिटिश सेना प्रथम विश्व के सिपाहियों को वरीयता कम दे रही थी. चंद्र सिंह ने सेना छोड़ने का मन भी बनाया लेकिन किसी तरह से उन्हें सेना में बनाए रखा.

साल 1920 में चंद्र सिंह को बटालियन के साथ वजीरिस्थान भेजा गया. 1922 में वह हवलदार मेजर बने.

पेशावर कांड के बने नायक

साल था 1930 का जब पेशावर में स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर होने जा रहा था. उसी दौरान चंद्र सिंह गढ़वाली को पेशावर जाने का हुक्म दिया गया. दिन था 23 अप्रैल 1930 पेशावर के किस्साखानी बाजार में अब्दुल गफ्फार खान के लिए एक आम सभा हो रही थी. अंग्रेस इस सभा को तितर बितर करना चाहते थे इसलिए कैप्टेन रेकैट 72 सिपाहियों को लेकर सभा वाली जगह पर पहुंचे जहां पर निहत्थे पठानों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया.लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने साफ तौर पर इनकार कर दिया कि वह निहत्थे लोगों पर गोली नहीं चला सकते. इस विद्रोह की सजा पूरी बटालियन को दी गई बटालियन को नजरबंद कर दिया गया. देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया. 16 लोगों को लम्बी सजा सुनाई गई. 39 लोगों का कोर्ट मार्शल कर दिया गया. 7 लोग बर्खास्त हुए. चंद्र सिंह गढ़वाली को एबटाबाद जेल भेजा गया. 11 साल जेल में बिताए. चंद्र सिंह के योगदान को देखते हुए उनपर भारत सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया है.

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संवाद 365/ डेस्क

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