टिहरी के देवलसारी महादेव मंदिर की क्या है मान्यता… जानिए क्या खास है इस शिव मंदिर में…

February 22, 2020 | samvaad365

टिहरी: शुक्रवार को इस मंदिर में महाशिवरात्रि मेले में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ गया है। इस शिवालय की अनूठी परंपराएं और कई रहस्य श्रद्धालुओं को हैरत में डाल देते हैं। जबकि सभी शिव मंदिरों में शिवलिंग के साथ जलेरी होती ही है, लेकिन प्राचीन देवलसारी महादेव मंदिर में शिवलिंग के साथ जलेरी न होना लोगों को आश्चर्य में डालता है।

मान्यता है कि यहां स्वंयभू शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले हजारों लीटर जल की निकासी कहां होती है, इस रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठा पाया है। दुनियाभर में तमाम शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना और जलाभिषेक के बाद शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का विधान है। यानी जलेरी को लांघा नहीं जाता है, और जलेरी तक पहुंचकर परिक्रमा को पूर्ण मान लिया जाता है, लेकिन देवलसारी महादेव में जलेरी नहीं होने के कारण मंदिर की पूरी परिक्रमा की जाती है।

देवलसारी मंदिर में जलाभिषेक की परंपरा भी कुछ अलग ही है। प्राचीन समय से चली आ रही परंपराओं के अनुसार आज भी मंदिर का पुजारी ही भक्तों के लाए हुए जल को खुद शिवलिंग पर अर्पित करता है। मंदिर के तीसरी पीढ़ी के पुजारी रामलाल भट्ट और गगन भट्ट पूजा-पाठ और व्यवस्थाओं का जिम्मा संभाले हुए हैं। वह कहते हैं कि शिवलिंग पर चढ़ने वाले जल के अदृश्य होने का राज उनके लिए भी रहस्य बना हुआ है। देवलसारी महादेव में शिवालय के आसपास लोग नाग-नागिन के जोड़े को घूमते देखते हैं। ये नाग-नागिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि यह शिव का क्षेत्र है और नाग-नागिन इस क्षेत्र की चौबीस घंटे पहरेदारी में लगे रहते हैं। ऐेसे में हर एक व्यक्ति को नहीं बल्कि इक्का-दुक्का लोगों को ही इनके दर्शन हो जाते हैं। वहीं महाशिवरात्रि को मौके पर यहां भक्तों का हुजूम लगता है क्योंकि मान्यता है कि यहां जो भी मुराद मांगों वो पूरी हो जाती है।

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संवाद365/बलवंत रावत

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