Father’s Day: कुम्हार ने बेटे के हाथ में चाक की जगह थमाई किताब, संघर्ष की भट्टी में खुद को तपा इस ख्वाहिश को कर रहे पूरा

June 19, 2022 | samvaad365

आज (रविवार) को पिता दिवस है। वैसे तो बच्चों की परवरिश करने वाले हर पिता के संघर्ष की अपनी कहानी होती है। पिता खुद की जरूरतों में कटौती कर बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश करता है। बच्चों का भविष्य संवारने के लिए हर मुश्किल सहता है। 58 वर्षीय राजकुमार प्रजापति की कहानी भी एक आदर्श पिता की है।

जगजीतपुर पीठ बाजार चौक निवासी राजकुमार कुम्हार हैं। राजकुमार को अपने पिता से 15 साल की उम्र से विरासत में चाक चलाकर मिट्टी के बर्तनों को आकार देने का हुनर मिला है। चाक चलाकर ही राजकुमार के परिवार का चूल्हा जलता है। घर के आंगन में ही बर्तनों को आकार देने के लिए चाक और पकाने के लिए भट्ठी लगाई है। राजकुमार खुद तो अनपढ़ हैं, लेकिन इकलौते बेटे किशन प्रजापति को विरासत में मिला पुश्तैनी चाक नहीं सौंपना चाहते हैं। बेटे को पढ़ाने-लिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।

बेटे किशन प्रजापति को उच्च शिक्षा दिलाने के बाद गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय से पीएचडी करवा रहे हैं। राजकुमार बेटे ही नहीं बल्कि कुम्हार बिरादरी में किसी नायक से कम नहीं हैं। राजकुमार बताते हैं वक्त के साथ लोगों की जरूरतें बदल रही हैं। घड़े की जगह फ्रिज और कुल्हड़ की जगह प्लास्टिक व थर्माकोल के गिलास ने ले ली है।

गमले भी मिट्टी की जगह सीमेंट और प्लास्टिक के फैंसी लोगों की पसंद बन गए हैं। अधिकतर कुम्हारों का काम बंद हो चुका है। राजकुमार बताते हैं काम बहुत मेहनत का है, लेकिन मजदूरी तक नहीं निकल पाती है। मिट्टी और बुरादा दोनों महंगा हो गया है। 1500 रुपये बुग्गी मिट्टी खरीदते हैं। एक बुग्गी मिट्टी में बर्तनों को आकार देने के लिए करीब 1200 रुपये का बुरादा मिलाते हैं।

राजकुमार बताते हैं, सुबह सात बजे से काम में जुट जाते हैं। रात नौ बजे तक सिलसिला चलता रहता है। गर्मी में लोग जहां कूलर और एसी से दूर नहीं होना चाहते हैं, वह परिवार का भरण-पोषण करने के लिए भट्ठी में बर्तन पकाते हैं। हाथों से डंडे के सहारे मिट्टी को कूटना और फिर छानकर पैरों से तैयार करना काफी मेहनत का काम है।

बेटे किशन को वह पढ़ाकर काबिल इन्सान बनाना चाहते हैं। इसलिए अपने काम से उसे हमेशा दूर रखा है। उसकी पढ़ाई और शौक पूरे करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। कर्ज लेकर तक उसकी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। राजकुमार कहते हैं बिरादरी में उनकी पहचान उसके बेटे से हो, यही सपना है। बिरादरी के लोग कह सकें किशन का पिता राजकुमार है। न कि कुम्हार राजकुमार का बेटा किशन है। राजकुमार अपने घर के आंगन पर चाक चलाकर बर्तन बनाते हैं। आंगन में ही बर्तनों को पकाने की भट्ठी लगी है।

आंगन के बाहर रोड साइड पर उनकी दुकान भी है। दुकान पर मिट्टी के गमलों से लेकर मटका, सुराही और अन्य बर्तन बिकते हैं। कालेज से घर पहुंचने पर किशन दुकान पर बैठकर पढ़ने के साथ बर्तनों को बेचता है। किशन कहता है उसके पिता उसके नायक हैं। उसे पढ़ाने के लिए बहुत कष्ट सहते हैं। राजकुमार प्रजापति की रोजी-रोटी चलाने के लिए भेल मददगार बना है। राजकुमार बताते हैं उनके पिता के वक्त 1968 से भेल के लिए गमलों की सप्लाई देते आ रहे हैं। आज भी भेल की डिमांड पर गमले बनाकर देते हैं। अपनी दुकान से गमला 60 रुपये का बेचते हैं, वहीं गमला बाजार में 80 रुपये का बिकता है।

संवाद 365, डेस्क

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