उत्तराखंड से तीन विभूतियों को आज भारत सरकार द्वारा पदमश्री सम्मान से नवाजा गया, जो उत्तराखंड के लिए बहुत ही गर्व के पल हैं।
पद्मश्री से सम्मानित होने में पहला नाम है जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण का,अपने जागरों से सामान्य व्यक्ति तो दूर बल्कि देवताओं को भी अवतरित करने वाले उत्तराखंड के लोकगायक प्रीतम भरतवाण को आज भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। गांवों में पारंपरिक रूप से गाये जाने वाले जागरों को दुनिया भर के मंचों तक पहुंचाकर सम्मान दिलाने का श्रेय जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण को ही जाता है।
उत्तराखंड के प्रत्येक जिले व गांव में लोग अपने अपने आराध्य देवताओं के दर्शन पा सके इसके लिए पूजा पाठ करते है,लेकिन ऐसी मान्यता है कि जागरों का देवताओं पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। ऐसे में प्रीतम भरतवाण अकेले ऐसे गायक है जिनकी आवाज से देवता भी पवित्र व्यक्ति पर अवतरित हो जाते है।
औजी या दास (ढोलवादक) समुदाय तक सीमित रहे जागरों को आज पुराने लोग ही नहीं बल्कि युवा पीढ़ी भी खूब पसंद करती है जिसका श्रेय प्रीतम भरतवाण को जाता है।
प्रीतम भरतवाण का जन्म देहरादून के रायपुर ब्लॉक स्थित सिला गांव के एक औजी परिवार में हुआ। अपने दादा और पिता की तरह उन्होंने भी ढोल वादन के अपने पारंपरिक व्यवसाय को आगे बढ़ाया। मात्र छह वर्ष की उम्र में ही उन्होंने विरासत में मिले ढोल वादन और जागर गायन के अपने हुनर का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। वह अपने पिता के साथ गांव-घरों में गाए जाने वाले जागरों में संगत करने लगे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा गांव के ही विद्यालय से हुई। वह स्कूल में आयोजित होने वाले हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेते।
स्थानीय स्तर पर गायकी और ढोल वादन को सराहना मिली तो प्रीतम ने 1988 में आकाशवाणी के लिए गाना शुरू कर दिया। चार साल बाद उनका पहला ऑडियो एल्बम रंगीली बौजी बाजार में आया, जिसे खूब पसंद किया गया। इसके बाद प्रीतम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तौंसा बौ, पैंछि माया, सुबेर, सरूली, रौंस, तुम्हारी खुद, बांद अमरावती जैसे एक से बढ़कर एक सुपरहिट एलबम निकाले। 50 से अधिक एल्बम में वे 350 से अधिक गाने गा चुके हैं। वे सभी देवी देवताओं के जागरों को अपने सुरों से सजा चुके हैं। जागरों के पारंपरिक स्वरूप को बरकरार रखते हुए उन्होंने दुनिया भर के मंचों पर इसका प्रदर्शन किया है। जागर गायकी की बेजोड़ कला के लिए ही उन्हें जागर सम्राट की उपाधि भी प्रदान की गई है।
इस क्रम में दूसरा नाम आता है बछेंद्री पाल का,जिनके लिए ये कहा जाता है -” हिमालय ऊंचा या बछेंद्री पाल !”
पदम भूषण सम्मान से नवाजे जाने पर पर्वतारोही बछेंद्री पाल ने कहा है कि वह पहले की तरह ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए समर्पित रहेंगी। इससे पहले पदम श्री आदि कई सम्मान से नवाजी जा चुकीं बछेंद्री पाल अब तक साढे चार हजार लड़कियों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं।
बछेंद्री पाल का जन्म उत्तरकाशी के नाकुरी गांव में 1954 में हुआ था। बेहद गरीब परिवार से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली बछेंद्री पाल ने 23 मई 1984 को एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया था। वर्तमान में बचेंद्री पाल टाटा स्टील जमशेदपुर में कार्यरत हैं.
पद्मश्री मिलने के क्रम में तीसरा नंबर आता है अनूप शाह की फोटोग्राफी से दीवारें भी बोल उठती हैं।
उत्तराखंड में कहीं कोई झील- पहाड़- नदी- झरने की फोटो अपनी ओर खींच ले तो यकीन मानिए 100 में से 90% मामलों में वह अनूप शाह की खींची हुई फोटो ही होगी।
केंद्र सरकार के पद्म श्री.और पद्म भूषण पुरस्कारों के नामों की घोषणा करने के बाद उत्तराखण्ड में रहने वाले जाने माने फोटोग्राफर और पर्वतारोही अनूप साह ने खुशी जाहिर की है और अपना पुरस्कार हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों को समर्पित किया है।
शुक्रवार देर रात मीडिया से बात करते हुए विश्व के जाने माने फोटोग्राफर और हिमालय पर्वत को कई बार फतह(चढ़कर)आए नैनीताल निवासी अनूप साह ने बताया कि ये उनके लिए सुखद अनुभव से कम नहीं है।उन्होने कहा कि उन्होंने इसके लिए कोई प्रयास नहीं किये थे और उनको एकाएक इसकी जानकारी मिलने पर आश्चर्य हुआ। अनूप साह ने प्रधानमंत्री को भी उनकी कला पहचानने और पुरस्कृत करने के लिए धन्यवाद किया है। उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में रहकर काम करने के लिए अपना पुरस्कार हिमालय वासियों को समर्पित किया है।
पदम श्री सम्मान से नवाजे गए प्रसिद्ध फोटोग्राफर अनूप शाह की फोटोग्राफी के मुख्य विषय प्रकृति ही है।
एक बेहतरीन पर्यावरणविद और पर्वतारोही अनूप शाह के फोटोग्राफ राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों की जान रहते हैं। 6611 मीटर ऊंची दुर्गम चोटी नंदा खाट को पहली बार अनूप शाह ने ही 1970 में फतेह किया था। पर्वतारोहण और हिमालय को आर पार नापने वाले अनूप शाह को पदम श्री मिलने से उत्तराखंड में खुशी की लहर है।
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देहरादून/संध्या सेमवाल