नई दिल्ली: छायावाद युग के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत को किया याद

May 24, 2019 | samvaad365

नई दिल्ली: 20 मई को जहां चुनावी सरगर्मी के बीच सभी पार्टियां चुनावों और राजनीति में व्यस्त थीं। ऐसे में छायावाद युग के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत की जयंती पर राजनीतिक पार्टियों ने श्रद्धांजलि देना तो दूर उन्हें याद करने तक की जहमत नहीं उठाई। वहीं सोमवार को सुमित्रानंदन पंत की 119वीं जयंती के मौके पर दिल्ली के गढ़वाल भवन में उनकी स्मृति में कार्यक्रम आयोजित किया गया। उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान की ओर से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने बतौर विशेष अतिथि शिरकत की।

वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता और जाने माने समाजसेवी संजय शर्मा दरमोड़ा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए।

इस मौके पर उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान की अध्यक्ष संयोगिता ध्यानी ने कहा कि ऐसे महान विभूतियों को हमें याद करना चाहिए जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी भी उन्हें जाने।

इस दौरान समाजसेवी मीना कंडवाल, कवि और समाजसेवी रामकृष्ण जोशी, साहित्यकार विजयलक्ष्मी विजेता, वरिष्ठ पत्रकार इंद्र चंद रजवार के साथ ही कई लोग मौजूद रहे। आपको बता दें कि सुमित्रानंदन पंत का जन्म अल्मोड़ा के कौसानी में 20 मई 1900 को हुआ था। उनके जन्म के कुछ घंटों बाद ही उनकी मां के देहांत के बाद उनकी दादी ने उनका पालन पोषण किया। उनका वास्तविक नाम गुसाईं दत्त था जो उन्हें पसंद नहीं था। लिहाजा उन्होंने खुद ही अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई थी। साल 1918 में वह अपने भाई के साथ काशी आ गए और वहां क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वह इलाहाबाद आ गए। जहां उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की। साल 1919 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह से प्रभावित हो उन्होंने अपनी पढ़ाई अधूरी ही छोड़ दी और आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। जिसके बाद उन्होंने हिंदी, संस्कृत, अग्रेजी और बांग्ला का स्वयं ही अध्ययन किया। सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति से गहरा लगाव था। वह अपने युग के बेहतरीन प्रकृति कवि थे। उन्होंने 7 साल की उम्र से ही सुंदर रचनाएं लिखना शुरू कर दिया था। उनके जीवनकाल में उनके द्वारा लिखी गई कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं। उन्हें पद्मभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, सोवियत लैंड नेहरू जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 28 दिसम्बर 1977 को छायावादी युग के इस बेहतरीन कवि का निधन हो गया।

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संवाद365/ पुष्पा पुण्डीर

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