आखिर क्या मिल पाएगी उत्तराखंड के 6 सांसदों  में से किसी को मंत्रिमंडल में जगह ?

May 27, 2019 | samvaad365

पिछली भाजपा सरकार हो या अब की भाजपा सरकार इस बार भी उत्तराखंड जैसे पहाड़ी प्रदेश से मोदी मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए उत्तराखंड के सांसद अभी भी ख्वाब देख रहे हैं पूर्ण बहुमत और प्रचंड मतों से केंद्र  सरकार में उत्तराखंड जैसे पहाड़ी प्रदेश से मंत्री पद की अपेक्षा करना स्वाभाविक भी है क्योंकि हमेशा से ही पीएम मोदी का उत्तराखंड से विशेष लगाव रहा है तो ऐसे में कहीं न कहीं उत्तराखंड की जनता भी जरूर चाहेंगी की उत्तराखंड से देश का नेतृत्व करने वाला कोई मंत्री जरूर बने आइए आपको बताते हैं की क्या खासियत है लोकसभा के पांचों सांसदों और एक राज्यसभा सांसद में से  और किस वजह पीएम मोदी के मंत्री मंडल में पा सकते हैं जगह

सबसे पहले बात करते हैं  हरिद्वार से दूसरी बार प्रचंड मतो से चुने हुए  सांसद रमेश पोखरियाल निशंक की जिन्होंने की  बीते सालों में उत्तराखंड प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए कमान भी संभाली है मेरिट में सबसे ऊपर निशंक 1991 से विधायक रहे हैं साथ ही यूपी में पर्वतीय विकास मंत्री,  उत्तराखंड में स्वास्थ्य मंत्री, मुख्यमंत्री, दूसरी बार लोक सभा सांसद जीते हैं। निशंक का राजनीतिक कद इतना बड़ा है कि खुद पहाड़ी क्षेत्र  से होते हुए वहः बतौर सांसद मैदानी क्षेत्र का  प्रतिनिधित्व कर रहे है सांसद की पैरवी में योगगुरु राम देव पहले भी थे और इस बार भी होने के उनके आसार है। खास बात यह रहेगी कि संघ से जुड़े हुए निशंक की पैरवी में  गडकरी जी कितना बोल पाते हैं और हरिद्वार से बाबा रामदेव उनकी केंद्र में कितनी तारीफ कर पाते हैं निशंक की अगर खास बात करें तो वह अपनी वाकपटुता से  किसी को भी अपनी ओर से बस में कर देते हैं। और यही वजह रही है कि लगातार बीजेपी के प्रदेश के नेता उनकी तरक्की में बाधा बनते रहे हैं।

तीरथ सिंह रावत यूपी सरकार 1996 में बीजेपी के एमएलसी बन गए थे। साथ ही बीजेपी की अंतरिम गवर्नमेंट में एजुकेशन मिनिस्टर रहे। उसके बाद उत्तराखंड में विधायक, फिर प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी रहे। 2017 में सतपाल महाराज उनकी सीट से  भी चुनाव लड़े। लेकिन वह उसके बाद घर बैठ गए थे। या यू कह सकते हैं कि उन्हें घर बिठा दिया गया था। लेकिन रावत को महज 5 माह पहले हिमाचल का चुनाव प्रभारी बना दिया तो वे एक बार फिर से पहाड़ी राज्य में पहाड़ का आदमी बनकर चर्चा में आ गए, हालांकि इस दौरान उन पर यह  सवाल यह भी उठने लगे कि उन्हें टिकट नहीं मिल पायेगा। क्योंकि आलाकमान अगर उन्हें टिकट देने का मन रखता तो उन्हें प्रभारी न बनाते। इधर उनके राजनीतिक संरक्षक जनरल  बीसी खण्डूड़ी के पुत्र कांग्रेस उम्मीदवार बनकर पौड़ी सीट पर आ गए  तो तीरथ को भाजपा हाईकमान ने गंभीरता से लिया।  और अंत समय मे उन्हें टिकट दे दिया गया। आलम इस कदर हुआ कि  सीएम त्रिवेंद्र ने इस सीट को प्रतिस्ठा वाली सीट बना दिया था क्योंकि त्रिवेंद्र रावत का ग्रह क्षेत्र भी यही जिला  था। कोटद्वार में उन्होंने कहा कि वे तीरथ को एवीवीपी वाली विंग में लाये हैं क्योंकि उनके कहने का मतलब यह था, तीरथ के  राजनीतिक गुरु खण्डूड़ी नहीं बल्कि खुद  त्रिवेंद्र हैं। हालांकि तीरथ कभी बड़बोलेपन पन  का शिकार नही हुए वे हमेशा साफ और लो  प्रोफ़ाइल में रहे। ऐसे में केंद्र से दुश्मनी लिए हुए खंडूरी को अमित शाह , ढंग से खत्म करने के लिए उन्हें मंत्री का इनाम दे सकते हैं।

अजय भट्ट वर्तमान में उत्तराखंड के बीजेपी चीफ हैं। अजय भट्ट  यूपी सरकार  में विधायक भी रहे हैं हालांकि पेशे से भट्ट  वकील भी  हैं। इसके अलावा भट्ट अंतरिम गवर्नमेंट में मंत्री भी रह चुके हैं। पूरे राजनीतिक दौर में भट्ट के साथ एक मिथक जरूर चला कि जब जब बीजेपी की सरकार आई , तब तब वे रानीखेत से चुनाव हारे। भट्ट 2012 में विजय बहुगुणा, हरीश रावत सरकार में विधानसभा में विपक्षी और दमदार चेहरा भी थे। जिसके बाद उन्हें बीच मे ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। ऐसे में भट्ट के पास  दोहरा चार्ज आ गया। लेकिन अपनी वाकपटुता से उन्होंने दोनों पदों में से  एक पद भी  हाथ से न जाने दिया। हालांकि 2017 में रानीखेत से हार के बाद उनका विपक्ष का पद चला गया। जिस दौरान वे अध्यक्ष बने, तब त्रिवेंद्र रावत खुद अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। क्योंकि वे उस दौरान  विधायक नहीं थे,और  संगठन के लिए का काम करना चाहते थे। लेकिन एन वक्त पर बीजेपी के छत्रपों ने अजय भट्ट को दोहरी जिम्मेदारी दे कर, त्रिवेंद्र समर्थकों को बड़ा झटका दे दिया था। लेकिन बदलते समय मे 2017 में त्रिवेंद्र हिमालय चढ़ गए और डोईवाला से जीतकर प्रदेश के सीएम भी बन गए लेकिन 2019 में भट्ट  ने उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेता को सबसे बडे मार्जिन से हराया है। हरीश रावत को आगे भी खत्म करना है इस लिये भट्ट जी को मंत्री पद देकर आगे किया जा सकता है। हालाँकि गौर करने वाली बात तो यह है कि  भट्ट का हाईकमान में कोई गॉडफादर नहीं है। लेकिन मजबूत इरादों और पृष्ठभूमि के चलते उनपर विश्वास किया जा सकता है

उत्तराखंड बनने के बाद से राजनीति का विस्तार लगातार होता गया । शरुवात से ही अल्मोड़ा में उन्हें कांग्रेसी सांसद  प्रदीप टम्टा के विकल्प के रूप में खड़ा किया गया। हालांकि टम्टा पहले बीजेपी के विधायक भी रहे। और  उत्तराखंड में राज्य मंत्री भी। जिसके बाद टम्टा 2014 में मोदी लहर में सांसद बन गए। केंद्र के दूसरे मंत्री मंडल विस्तार में आरएसएस के बड़े नेता शिव प्रकाश ने उन्हें केंद्र में राज्य मंत्री भी  बनवा दिया था। लेकिन इस बार  टम्टा फिर से मोदी लहर में पुनः जीत गए हैं। लेकिन उनके खाते में पिछले मंत्री मंडल का कोई अच्छा रिकॉर्ड नहीं है।साथ ही  उन्हें तेजतर्रार नेताओं की गिनती में भी नहीं रखा जाता। वावजूद इस तरह के नेताओं को कभी कभी हाईकमान पसन्द करता है। लेकिन उत्तराखंड में  टम्टा दलित चेहरा हैं। ऐसे में उन्हें  इस ऐंगल से मंत्री पद दिया जा सकता है। हालांकि खास बात तो यह है कि  शिव प्रकाश उनके लिए इस बार  भी  संघर्ष करते हैं या नहीं। और संघर्ष किया तो, उनकी मेहनत को अपार सफलता मिलती है या नही,यह देखना दिलचस्प होगा

टिहरी लोकसभा से रानी ने तीसरी बार सांसद बनकर इतिहास लिख दिया है सारे सांसदों में सीनियर  महिला सांसद होना उनके पक्ष में जाता है। अंदरखाने की बात की जाए तो रानी बीजेपी में  किसी गुट में नहीं है। पूरे कार्यकाल में वह अभी तक  काम करने में बेहद  ढीली है,लेकिन सबके साथ रहना  ,किसी का भला नहीं कर सकती तो बुरा भी नहीं करती है वाली बात सबको भाती है। जिसका आलम यह है कि वह वर्तमान में चीफ मिनिस्टर की गुड़ बुक में है। लेकिन वर्तमान में रानी का दिल्ली हाइकमान  में कोई गॉडफादर नहीं है। ऐसे में  अब संभव नहीं लगता कि वह मंत्री बनाने के लिए मोदी के पास जाएंगी। यदि गई तो  सीनियर महिला होने के नाते सब कुछ संभव है। चुनाव समीकरण की बात की जाए तो इस बार  बीजेपी संगठन उत्तराखंड ने उनकी खराब रिपोर्ट भेजी थीं कि पार्टी कार्यकर्ताओं से इनका अटैच मेंट नहीं है और जनता से उनका कोई सरोकार नही है लेकिन रानी उस रिपोर्ट को   दिल्ली आलकमान से फड़वा कर टिकट लाई , मोदी सुनामी में भौंकाली न  दिखाकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को  3 लाख वोटों से हराकर तीसरी बार संसद पहुंच गई । हालांकि रानी बिल्कुल भी  राजनीतिक नहीं है। उन्हें बतौर सीधी सरल महिला के रूप में जनता देखती है। पर बशर्ते जानती सब कुछ है। हालांकि रानी अखबारों, टीवी में नही रहती, तो ऐसे में पीएम मोदी उन्हें  एक मात्र महिला उन्हें मंत्री बना सकते है।

अनिल बलूनी वर्तमान में उत्तराखंड से राज्य सभा सांसद हैं इसके अलावा वह बीजेपी मीडिया विंग के चीफ हैं और  मंत्री बनने की पूरी समझ रखते हैं। आपको बता दें कि मोदी और  अमित शाह  की जब 19 तारीख को प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई थीं तब उसी प्रेस को  बलूनी संचालन कर रहे थे। पूर्व में गुजरात लिंक से मोदी शाह के करीब आये और  नतीजतन इतनी छोटी उम्र में सांसद बन गए। उनकी इच्छा अखबारों में छाए रहने से बड़ी है एहशास कराती है। सोशल साइट की बात करें तो बलूनी की फेसबुक वॉल में रेल मंत्री  पीयूष गोयल ने बलूनी के कंधे में हाथ डाला है। केंद्र में उनकी बड़े बड़े लोगों से निकटताऐ  हमेसा से ही रही हैं ऐसे में यह बात  प्रदर्षित जरूर करती है कि उन पर भरोसा आलाकमान कर सकता है । हालांकि  जमीन पर मंत्री बनने के बाद से उनकी  सार्थकता  जरूर बढ़ जाएगी। वे विधायक, मंत्री नहीं रहे, लेकिन रविशंकर प्रसाद, सहित नकवी, और कई बड़े लीडर के साथ चुनाव आयोग में कांग्रेस की शिकायत करने में सबसे आगे जरूर रहते गए । जिसका आलम यह है कि  टीवी अखबारों में वह बीजेपी का  जाना पहचाना चेहरा हैं।

हालांकि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी प्रदेश को जरूर उम्मीद है कि उसे भी देश का नेतृत्व करने का मौका मिले हालांकि 5 लोक सभा,1 राज्य सभा सांसद कुल 6 सांसदों में एक ही को मंत्री बनने की उम्मीद है। यदि न भी बनाये तो कोई कुछ कर नहीं सकता है। 2014 की शुरुआत में उत्तराखंड से कोई सांसद मंत्री नहीं बनाया गया था। लेकिन 19 में ऐसी मंत्री पद की उम्मीद पर इस बार पहाड़ की जनता निगाहें गड़ाए है

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संवाद365/कुलदीप 

 

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