चमोली: नंद केसरी गांव में है नंदा का पौराणिक मंदिर, रक्षा सूत्र बांधकर मांगी जाती है मनौतियां

June 15, 2020 | samvaad365

चमोली: गढ़वाल और कुमाऊं के बीच बसे नंद केसरी गांव में मां नंदा का पौराणिक मंदिर है। यहां की बोली भाषा एवं रीति रिवाज भी कुमाऊं से मिलते हैं। माना जाता है कि मां पार्वती ने अपनी आंखों के केशों को झाड़कर केसरी देवी काे उत्पन्न किया था, उनके नाम पर इनका नाम नंद केसरी हुआ। इसी स्थान पर नंदा देवी की ऐतिहासिक राजजात यात्रा के समय गढ़वाल और कुमाऊँ की देव डोलियों और छतोलियो का मिलन होता है.  यहां पर मां नंदा देवी का पौराणिक मंदिर है। मंदिर की प्रमुख विशेषता है कि इस मंदिर में पूजा ठाकुर पुजारी करते हैं।

किवदंती है कि पिंडारी ग्लेशियर से निकलने वाली पिंडर नदी के किनारे एक दैत्य से छिपकर मां नंदा यानी मां पार्वती नदी किनारे गुफा में छिप गई थीं, उस गुफा के मुंह पर रखा गया पत्थर दैत्य ने अपने सींग से फाड़ दिया था, यह पत्थर आज भी वहीं पड़ा है

इस मंदिर में कई पौराणिक मूर्तियां हैं, जिनमें भगवती नंदा की मूर्ति, शंकराचार्य काल, पांडवों के समय की मां काली की मूर्ति विराजमान हैं। लाटू देवता लिंग रूप में स्थित हैं। हालांकि 1972 में बज्रपात की वजह के वृक्ष के कुछ हिस्से को नुकसान पहुंचा था।  पेड़ के चारों और चबूतरा बना है। माना जाता है कि यह मां नंदा का निवास स्थल है।

यहां पर महिलाएं इस वृक्ष के चारों ओर रक्षा सूत्र बांधकर मनौतियां मांगती है, इस वृक्ष की जड़ और तने के हिस्सों पर प्राकृतिक रूप से कुछ ऐसी आकृतियां उभरी हुई हैं जो देव आकृतियों सी प्रतीत होती हैं, मंदिर परिसर में कई पत्थर ऐसे भी हैं जिनपर विभिन्न आकृतियां और लिखावट है जिसे कोई पढ़ नही पाया, ग्रामीणों की सरकार से मांग है कि पुरातत्व विभाग की टीम मंदिर परिसर में रखे गए पत्थरो की उम्र उनकी लिखावट, उन पर गढी आकृतियों और मंदिर परिसर में विशाल वृक्ष पर उभरी आकृतियों का अध्ययन कर इस पौराणिक मंदिर से जुड़ी मान्यताओं पर सर्वेक्षण करे और उसके बाद इस पौराणिक धरोहर को संरक्षित किया जा सके.

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संवाद365/पुष्कर नेगी

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