सरकार से संशोधन हेतु उत्तराखंड फ़िल्म नीति 2022 के ड्राफ्ट पर “फ़िल्म उद्योग संयुक्त समिति” ने तैयार किया मांगपत्र

July 26, 2022 | samvaad365

देहरादून।  उत्तराखण्ड शासन द्वारा प्रस्तावित फ़िल्म नीति २०२२ के ड्राफ्ट पर उत्तराखंडी फ़िल्म निर्माता, निर्देशकों, कलाकारों व तकनीशियनों द्वारा गठित “फ़िल्म उद्योग संयुक्त समिति, उत्तराखंड” की एक बैठक में गहन चर्चा के बाद अनेक संशोधन की अपेक्षा करते हुए सरकार को साझा मांगपत्र सौंपने का निर्णय लिया गया। साथ ही फ़िल्म नीति २०२२ के ड्राफ़्ट की तारीफ़ करते हुए सरकार को बधाई भी दी गई।

प्रस्तावित ड्राफ्ट पर फ़िल्म उद्योग संयुक्त समिति उत्तराखंड की कुछ आपत्तियां, सुझाव और मांग रखी गई हैं वे इस प्रकार हैं।

1. प्रस्तावित नीति के कॉलम 6(1) में गढवाली, कुमाउनी व जौनसारी फिल्मों के लिए 40 फीसदी अनुदान का प्रस्ताव है, जबकि हमारे पर्वतीय प्रदेश की दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों व क्षेत्रीय फ़िल्म उद्योग की विपन्न अवस्था को देखते हुए इसे कम से कम 70 फीसदी किया जाना चाहिए।

2. इसी कॉलम 6(1) में प्रस्तावित है कि फ़िल्म शूटिंग के दौरान राज्य में व्यय की गई राशि का 40 प्रतिशत अनुदान मिलेगा। जबकि फ़िल्म निर्माण में शूटिंग से पहले प्री प्रोडक्शन व शूटिंग के बाद पोस्ट प्रोडक्शन का खर्च होता है। इसलिए यदि क्षेत्रीय भाषाई सिनेमा को खड़ा करना है तो क्षेत्रीय भाषा की फ़िल्म के प्री प्रोडक्शन (लेखन,गीत,संगीत व संगीत रेकॉर्डिंग) प्रोडक्शन ( शूटिंग) व पोस्ट प्रोडक्शन (एडिटिंग, डबिंग,डी आई, वी एफ एक्स, डॉल्बी साउंड) के कुल खर्च के अतिरिक्त, सेंसर प्रमाण पत्र, पशु सुरक्षा से सम्बंधित अनापत्ति प्रमाण पत्र का खर्च और फ़िल्म के क्यूब अथवा यू.एफ.ओ. प्रिंट तक के कुल खर्च को फ़िल्म की लागत में जोड़ा जाना चाहिए और फ़िल्म निर्माण की उस कुल लागत पर अनुदान दिया जाना चाहिए। अन्यथा कोई भी निर्माता क्षेत्रीय फ़िल्म का रिस्क क्यों लेगा, जिसका अभी कोई बाजार नहीं है।

3. पोस्ट प्रोडक्शन व प्रोडक्शन के इन सब विभागों के लिए यह शर्त नहीं होनी चाहिए कि ये सब उत्तराखंड के स्टूडियो अथवा उत्तराखंड में उपलब्ध उपकरणों से ही पूरे किए जाएं, क्योंकि अभी उत्तराखंड में ये सारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। उत्तम क्वालिटी की लाइट्स, कैमरा व अन्य उपकरणों के बिना उत्तम गुणवत्ता वाली फिल्म कैसे बन सकती है। और ये सब बेहतर उपकरण दिल्ली या मुंबई में ही उपलब्ध हैं। इसलिए अभी साधनों की अवस्थापना तक क्षेत्रीय सिनेमा की बेहतर गुणवत्ता के लिए दिल्ली या मुंबई के स्टूडियोज का रुख करना ही पड़ता है। अतः फ़िल्म के किसी भी प्रोसेस चाहे ‘प्री-प्रोडक्शन’ हो ‘प्रोडक्शन’ हो या ‘पोस्ट- प्रोडक्शन’ हो, यह शर्त नहीं होनी चाहिए कि ये उत्तराखंड में ही करने पर अनुदान का लाभ मिलेगा। बल्कि सभी प्रक्रियाओं को इसमें शामिल किया जाना चाहिए।

4. कॉलम 6(1) खण्ड 2 की पात्रता सूची में बिंदु संख्या दो में उत्तराखंड फ़िल्म विकास परिषद से निर्गत अनुमति में ‘शूटिंग’ शब्द जोड़ा जाए, की शूटिंग हेतु अनुमति पत्र, अन्यथा इसका अभिप्राय स्पष्ट नहीं है। 5. कॉलम 6 (1 ) के खण्ड 4 में फ़िल्म का प्रदर्शन कम से कम 10 स्क्रीन में अनिवार्य बताया गया है जिस पर घोर आपत्ति है, उत्तराखंड में एक गढवाली फ़िल्म के लिए सिर्फ 3 ही बड़े नगर हैं, देहरादून, ऋषिकेश व कोटद्वार, इसके अलावा नई टिहरी में ही सिनेमा हॉल हैं। कुमाऊं में तो और बुरे हालात हैं। हल्द्वानी, खटीमा व रामनगर के अतिरिक्त सिनेमाघर हैं ही नहीं हैं। इसलिए इस संख्या को किसी भी हालत में 5 से अधिक रखना, निर्माता के हित में नहीं है।

5. कॉलम 6(4 ) में वैब सीरीज को 30 फीसदी अनुदान का प्रस्ताव है जबकि उत्तराखंडी फिल्मों की तरह उत्तराखंडी भाषा की वैब सीरीज को भी समान प्रतिशत में अनुदान दिया जाए। अपनी लोकभाषा में फ़िल्म की बजाय यदि निर्माता वैब सीरीज बनाता है तो उसे भी समान रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। क्योंकि अब भविष्य वैब सीरीज का ही नजर आता है।

ब. फ़िल्म पुरस्कारों से सम्बंधित सरकार ने फ़िल्म नीति के कॉलम 7(2) में लोक भाषा की फ़िल्मों को भी पुरस्कार दिए जाने का प्रस्ताव किया है, ये निश्चित ही उत्तराखंडी लोक भाषा के सिनेमा के लिए सबसे सराहनीय पहल है। हम इसका स्वागत करते हैं लेकिन उस पर हमारे कुछ महत्वपूर्ण सुझाव हैं। 1. सर्वोत्तम फ़िल्म के अलावा सर्वोत्तम फ़िल्म का द्वितीय पुरस्कार भी होना चाहिए जिसको 5-7 लाख का पुरस्कार दिया जा सकता है। इससे सर्वोत्तम फ़िल्म बनाने के लिए निर्माताओं में अधिक उत्साह व आशा का संचार होगा और फिल्मों की संख्या व गुणवत्ता में आशातीत वृध्दि होगी। 2. फ़िल्म में संगीत का स्थान आत्मा की तरह होता है, और संगीत की दो विधा होती हैं, संगीत निर्देशक (गीतों से सम्बंधित) तथा पार्श्व संगीत निर्देशक। इसलिए इन दोनों श्रेणियों को भी पुरस्कार में सम्मिलित करना चाहिए। 3. सर्वोत्तम गायक में दो श्रेणियां बहुत आवश्यक हैं, पुरुष व महिला। दोनों के लिए पुरस्कार होने चाहिए।4. संगीत व गायक के साथ गीतकार का भी उल्लेखनीय स्थान होता है, इसलिए सर्वोत्तम गीतकार का पुरुस्कार भी बहुत जरूरी है।5. सिनेमोटोग्रफर के अलावा तकनीकी विधा में फ़िल्म के सम्पादन का विशेष महत्व है। इसलिए सर्वोत्तम सम्पादक का पुरुस्कार भी जरूरी है।6. किसी भी फ़िल्म के प्राण उसके पटकथा और लेखन में होते हैं। फ़िल्म में लेखन की तीन विभिन्न विधा होती हैं, कथा, पटकथा व संवाद। इसलिए ‘पटकथा लेखक’ के अतिरिक्त ‘कथा’ व ‘संवाद’ को भी पुरस्कार में शामिल करना चाहिए।

सर्वोत्तम अल्बम गायक के स्थान पर गैर फिल्मी गीतों के गायक का उल्लेख होना चाहिए, क्योंकि अब अल्बम की जगह मात्र अलग अलग गीत ही यूट्यूब पर रिलीज होते हैं। और इसमें भी ‘पुरुष’ व ‘महिला’ दोनों श्रेणियां होनी चाहिए।

कॉलम 7(3) में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड में स्पष्ट होना चाहिए कि जिसने ‘उत्तराखंड की लोकभाषा के क्षेत्र में वर्षों तक उल्लेखनीय कार्य कर श्रेष्ठ योगदान दिया है’, उसी को इसमें शामिल किया जाएगा।

स. अनुदान समिति के गठन के विषय मे कॉलम 18 में अनुदान समिति के गठन की रूपरेखा है। हमारा स्पष्ट मानना है कि समिति में फ़िल्म परिषद के उपाध्यक्ष (पदेन सदस्य ) के अलावा एक अन्य उपाध्यक्ष तथा कम से कम 5 अन्य गैर सरकारी सदस्य होनें चाहिए जो फ़िल्म विधा के विशेषज्ञ हों। और फ़िल्म परिषद के गठन न होने की स्थिति में सरकार द्वारा नामित चार अधिकारियों के अतिरिक्त 5 गैर सरकारी सदस्य भी शामिल हों जो फ़िल्म विधा के विशेषज्ञ हों। ताकि फिल्मों का बेहतर आकलन व सही परीक्षण हो सके।

द. उत्तराखंड फ़िल्म परिषद के गठन के विषय मे कॉलम संख्या 19. के बावत हमारा सर्वसमम्मति से पारित प्रस्ताव है कि जल्द ही उत्तराखंड फ़िल्म परिषद का गठन होना चाहिए। लेकिन उसमें दो उपाध्यक्ष होने चाहिए, एक जो बाहरी फिल्मों से सम्बंधित हो और दूसरा जो उत्तराखंडी लोक भाषा के सिनेमा के लिए ही समर्पित हो, इसके साथ कम से कम पाँच गैर सरकारी सदस्य ऐसे हों जिन्हें उत्तराखंडी लोकभाषा और सिनेमा तकनीक व विकास का अच्छा ज्ञान हो। ताकि उत्तराखंड के लोकभाषा के सिनेमा को भी नई ऊंचाई दी जा सके। हमे विश्वास है कि उत्तराखंड सरकार हमारे सुझावों पर गम्भीरता से विचार कर हमारे सभी उक्त उपयोगी सुझावों को उत्तराखण्ड फ़िल्म नीति 2022 में शामिल करेगी और प्रदेश की लोकभाषाओं व लोकभाषा के सिनेमा के उत्थान व संरक्षण में इस नीति का योगदान देगी। शीघ्र ही यह मांगपत्र सरकार को सौंपा जाएगा।

बैठक में निर्माता, निर्देशक, लेखक अनुज जोशी , निर्माता व निर्देशक के. राम नेगी, निर्देशक व गीतकार गणेश वीरान, निर्माता, निर्देशक व लेखक प्रदीप भण्डारी , वरिष्ठ अभिनेता बलराज नेगी , विनोद खण्डूड़ी, चन्द्रवीर गायत्री, गम्भीर जयाड़ा, संगीतकार अमित वी 0 कपूर, गायक जितेन्द्र पंवार समेत अनेक लोग सम्मलित रहे। जबकि इंडस्ट्री के अन्य निर्माता निर्देशकों ने फ़ोन एवं व्हाट्सअप्प आदि माध्यमों से संशोधनों हेतु अपने विचार एवं सहमति प्रदान की।

संवाद 365, डेस्क

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