पोखरी- हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति मेले में खिली जनता के चेहरों की मुस्कराहट!

September 19, 2022 | samvaad365

चमोली- सात दिवसीय हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल खादी ग्राम उद्योग एवं पर्यटन शरदोत्सव मेले में मची धूम , लोककलाकार रुहान भारद्वाज व करिश्मा शाह के गानों पर खूब झूमे दर्शक , वही मेले में प्रतिभाग करने पहुंचे कर्नल अजय कोठियाल को मेला समिति ने स्मृति चिन्ह देकर किया सम्मानित कर्नल बोले पोखरी के युवाओं के लिए फिर खुलेगा यूथ फाउंडेशन कैंप.

दूसरी ओर मेले में स्कूली छात्रों व महिला मंगलदल के साथ पूर्व सैनिकों ने भी लिया भाग. रस्साकशी, रामी बोरानी व कवि सम्मेलन के साथ-साथ पूर्व सैनिक संगठन ने भी मेले में अपनी प्रतिभा से सबका मन मोहा हैं, मेले में कृषि ,सेवा ,इंटरनेशनल शिक्षा ,स्वास्थ्य, खादी, वन विभाग ,चाइल्ड हेल्प लाइन संस्था सहित विभिन्न प्रदर्शनी लगी हुई ,वही इस मेले को cm धामी ने राजकीय मेला घोषित करने के साथ – साथ सीएम ने मेले के आयोजन के लिए 5 लाख रूपये देने की घोषणा की थी जिससे भविष्य में मेले को और भव्य बनने की उम्मीद जगी हैं।हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वालः का जन्म रुद्रप्रयाग जिले के ग्राम मालकोटी, पट्टी तल्ला नागपुर में 20 अगस्त 1919 को हुआ था. उन्होंने मात्र 28 साल के जीवन में एक हजार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिंदी साहित्य को दिया. मृत्यु पर आत्मीय ढंग और विस्तार से लिखने वाले चंद्र कुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि हैं.

चन्द्र कुंवर बर्त्वाल 28 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए थे. लेकिन इस छोटी सी उम्र में भी वह देश-दुनिया को सुंदर साहित्य दे गए. चंद्र कुंवर बर्त्वाल की कविताएं मानवता को समर्पित थीं. बेशक वह प्रकृति के कवि पहले थे. शूरवीर ने कहा कि बर्त्वाल हिंदी साहित्य के एक मात्र ऐसे कवि थे जिन्होंने हिमालय, प्रकृति व पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य की सुंदर भावनाओं और संवेदनाओं को अपनी कविताओं में पिरोया. उनकी कविताएं हिमालय व प्रकृति प्रेम की साक्षी रही हैं.

कालिदास को मानते थे गुरुः ‘मैं न चाहता युग-युग तक पृथ्वी पर जीना, पर उतना जी लूं जितना जीना सुंदर हो. मैं न चाहता जीवन भर मधुरस ही पीना, पर उतना पी लूं जिससे मधुमय अंतर हो’. ये पंक्तियां हैं हिंदी के कालिदास के रूप में जाने माने प्रकृति के चहेते कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल की. विश्व कवि कालिदास को अपना गुरु मानने वाले चंद्र कुंवर बर्त्वाल ने चमोली के पोखरी और रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि में अध्यापन भी किया था. चंद्र कुंवर बर्त्वाल को प्रकृति प्रेमी कवि माना जाता है. उनकी कविताओं में हिमालय, झरनों, नदियों, फूलों, खेतों, बसंत का वर्णन तो होता ही था. लेकिन उपनिवेशवाद का विरोध भी दिखता था. आज उनके काव्य पर कई छात्र पीएचडी कर रहे हैं.युवावस्था में हुए टीबी के शिकारः कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल (Himwant Kavi Chandra Kunwar Bartwal) प्रमुख कविताओं में विराट ज्योति, कंकड़-पत्थर, पयस्विनी, काफल पाकू, जीतू, मेघ नंदिनी हैं. युवावस्था में ही वह टीबी के शिकार हो गए थे. इसके चलते उन्हें पांवलिया के जंगल में बने घर में एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ा था. मृत्यु के सामने खड़े कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल ने 14 सितंबर, 1947 को हिंदी साहित्य को बेहद समृद्ध खजाना देकर दुनिया को अलविदा कह दिया।वही कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल की मृत्यु के बाद उनके सहपाठी शंभुप्रसाद बहुगुणा ने उनकी रचनाओं को प्रकाशित करवाया और यह दुनिया के सामने आईं. इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि आज भी हिंदी साहित्य के अनमोल रत्न कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल को राष्ट्रीय स्तर पर वो सम्मान प्राप्त नहीं हो सका है, जिसके वह हकदार थे.
और पोखरी महाविद्यालय व पोखरी मेले को हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्तवाल के नाम मे होना उनको सच्ची श्रद्धांजलि देता है। वही पोखरी का मेला पूरे चमोली में इसलिए ऐतिहासिक मेला माना जाता हैं.

(संवाद 365, संदीप बर्त्वाल)

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