संवाद विशेष : मुनस्यारी में महेश्वर पूजा की ऐसी रौनक देख कर खुश हो गए होंगे भगवान शिव

October 10, 2021 | samvaad365

देवभूमी उत्तराखंड मेलों देवताओं और त्योहारों की भूमी है। पहाड़ों में सांस्कृतिक परंपराओं को मेलों और पूजाओं के माध्यम से मनाने की रीत यहां सदियों से चली आ रही है। धीरे-धीरे पलायन और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से पहाड़ों की कुछ इसी तरह की परंपराएं खत्म या सीमित होती जा रहीं है। जिससे बचने के लिए जरूरत है नई पीढ़ी को अपनी लोक संस्कृति को जानने और उसे अपनाते हुए आगे ले जाने की। पिथौरागढ़ के मुन्स्यारी में बर्निया गांव में सालों से महेश्वर पूजा होती है । जिसे स्थानीय लोगों द्वारा संजोया जा रहा है। खास बात ये है स्थानीय युवा भी अपनी परंपरा को जीवीत रखने के लिए काम कर रहे हैं औऱ इसे आगे ले कर जा रहे हैं।

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मुन्स्यारी के रहने वाले महेश पापरा एसे ही एक युवा हैं जो सोशल  मीडिया के जरिए अपनी परंपरा और संस्कृति को लोगों तक पहुंचाते हुए इसे बचाए रखने का काम कर रहे हैं। महेश पेशे से एक फिल्ममेकर एक्टर हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में हर साल भादों माह की पंचमी को होने वाली महेश्वर पूजा पर डोक्यूमेंटरी बनाई है। महेश कहते हैं की इस डॉक्यूमेंटरी के जरिए वो अपनी संसकृति को लोगों तक पहुंचाएं और उसे एक नई पहचान दें ताकी पहाड़ों की संस्कृति खत्म ना हो और नई पीढ़ी भी इस बारे में जान सके।

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महेश्वर पूजा इस साल 8 सितंबर से 11 सितंबर तक मनाई गई । जिसमें पहले तीन दिन नौरतु( रात्रि जागरण) लगता है और आखिरी दिन भगवान महेश्वर की पूजा के साथ इस पूजा का समापन होता है। पूजा के लिए गांव वाले काफी पहले से ही तैयारी में जुट जाते हैं और एक साथ मिलकर पूजा से जुड़े सारे काम करते हैं। वहीं इस साल की पूजा कई मायनों में खास थी लेकिन इस साल नए और भव्य महेश्वर मंदिर के निर्माण ने इसे और दिव्य बना दिया।

 

 

महेश्वर पूजा के दौरान क्षेत्र के लोग फिर चाहे महिलाएं हों या बच्चे या पुरुष सभी अपनी पारंपरिक वेश भूषा में दिखते हैं। इस दौरान होने वाले सभी कार्यों में देवभूमी की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।  ग्रामीण पारंपरिक वाद्य यंत्रों में भी जमकर थिरकते हैं। लोग कुमाउंनी नृत्य औऱ गीत शैली ढुस्का और चांचड़ी के जरिए रात भर नाचते और गाते हुए अपनी रात बिताते हैं ।

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महेश्वर पूजा पर बनी डॉक्यूमेंटरी को माही पापरा नाम के यूट्यूब चैनल पर डाला गया। जिसे लोग बहुत पसंद कर रहे हैं। डॉक्यूमेंटरी में पहले दिन से लेकर समापन तक पूजा में होने वाली खास बातों और सांस्कृतिक पहलुओं को दिखाया ग या है। आज पहाड़ी संस्कृति को संजोये रखने औऱ इसे संवारने की जरूरत है, ताकी वो पलायन के दंश के कारण विलुप्त ना हो जाए औऱ इसके लिए युवाओं को ही आगे आना पड़ेगा।

 संवाद 365, डेस्क

 

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