गढ़वाल राइफल के शहीद जवान को मिलता है प्रमोशन और छुट्टी, सेवा में लगे रहते हैं जवान, आज है वीर शहीद की जयंती ….

August 19, 2021 | samvaad365

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के रहने वाले जसवंत सिंह रावत इस दुनिया में नहीं है, फिर भी उनको प्रमोशन मिलता है। छुट्टी भी मिलती है। सुबह में साढ़े चार बजे चाय, नौ बजे नाश्ता और शाम में खाना भी दिया जाता है। क्योकि वो इस पावन धरा के ऐसे वीर हैं जिन्होनें  अकेले 72 घंटे तक चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया था और 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था। इसी वजह से उनको इतना सम्मान मिलता है। उनका जन्म 19 अगस्त, 1941 को हुआ था। उनके पिता गुमन सिंह रावत थे। जिस समय शहीद हुए उस समय वह राइफलमैन के पद पर थे और गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में सेवारत थे। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश के तवांग के नूरारंग की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी।

बचपन से ही जसवंत सिंह रावत जेशप्रेम से लबरेज थे। वो 17 साल की छोटी सी उम्र में ही भारतीय सेना में भर्ती होने चले गए, लेकिन इस वक्त कम उम्र होने की वजह से उन्हें भर्ती नहीं किया गया। इसके बाद भी उन्होंने हौसला नहीं हारा। 19 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह सेना में राइफल मैन के पद पर शामिल किए गए थे। इसके बाद 14 सितंबर 1961 को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई। इसकी एक साल बाद ही चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के रास्ते भारत पर हमला कर दिया था। चीन का भारत के इस क्षेत्र पर कब्जा करने का उद्देश्य था। इस दौरान सेना की एक बटालियन की एक कंपनी नूरानांग पुल की सुरक्षा के लिए तैनात की गई। इस कंपनी में जसवंत सिंह भी शामिल थे। इस बीच चीन की सेना भारत पर लगातार हावी होती जा रही थी। इस वजह से भारतीय सेना ने गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया गया।

मगर इसमें शामिल जसवंत सिंह, गोपाल गुसाई और लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी वापस नहीं लौटे। ये तीनों सैनिक एक बंकर से लगातार फायर कर रही चीनी मशीनगन को छुड़ाना चाहते थे। तीनों जवान चट्टानों में छिपकर भारी गोलीबारी से बचते हुए चीन की सेना के बंकर तक आ पहुंचे। इसके बाद सिर्फ 15 यार्ड की दूरी से इन्होंने हैंडग्रेनेड फेंका और चीन की सेना के कई सैनिकों को मारकर मशीनगन छीन लाए। ये ही वो पल था कि इस लड़ाई की दिशा ही बदल गई। चीन का अरूणांचल प्रदेश को जीतने का सपना पूरा नहीं हो पाया। इस गोलीबारी में त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाईं मारे गए। जसवंत सिंह को चीन की सेना ने घेर लिया और उनका सिर काटकर ले गए। इसके बाद 20 नवंबर 1962 को चीन की तरफ से युद्ध विराम की घोषणा कर दी। इस युद्ध के बाद उत्तराखंड का ये जवान अमर हो गया। जवानों और स्थानीय लोगों का मानना है कि जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की निगरानी कर रही है।

संवाद365 जसवंत सिंह रावत की जयंती पर उन्हें नमन करता है । पूरे देश को उनपर गर्व है । जय हिन्द 

संवाद365,डेस्क

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