नवरात्रि स्पेशल : जानें शक्तिपीठ मंदिर नैना देवी की कहानी जिनके अंश्रु से हुआ था नैनी झील का निर्माण

October 10, 2021 | samvaad365

आज नवरात्र का पांचवा दिन है । आज के पावन दिन हम आपको बताने जा रहे नैना देवी मंदिर की कहानी । नैना देवी का मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है । यह मंदिर देवी का शक्तिपीठ हैं।1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। कहा जाता है जब भगवान शिव देवी सती के मृत देह को लेकर आकाश से जा रहे थे तो देवी सती के शरीर के अंग जहां जहां गिरे वो शक्तिपीठ कहलाया । उन्ही में से एक है नैना देवी का मंदिर जहां देवी सती की आंखे गिरी थी । प्रचलित मान्यता के अनुसार मां के नयनों से गिरे आंसू ने ही ताल का रूप धारण कर लिया और इसी वजह से इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा।

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मंदिर के अंदर नैना देवी के साथ गणेश जी और मां काली की भी मूर्तियां हैं। मंदिर के प्रवेशद्वार पर पीपल का एक विशाल वृक्ष है। यहां माता पार्वती को नंदा देवी कहा जाता है। मंदिर में नंदा अष्टमी के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जो कि 8 दिनों तक चलता है। यह मंदिर नैनीताल बस स्टैंड से 2 किमी की दूरी पर  है। मंदिर परिसर में मां को चढ़ाने के लिए पूजा सामग्री मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि माता के दर्शन मात्र से ही लोगों के नेत्र रोग की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है। मंदिर में मां के दर्शन करने के दो नैन विराजमान है । कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मनोकामना मांगने पर सबकी मुराद पूरी होती है ।

 

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि ‘मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल – स्वरुप यज्ञ के हवन – कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।’

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जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट – भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी – देवता शिव के इस रौद्र – रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी – देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश – भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ – जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ – वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे ; वहीं पर नैनादेवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है।

संवाद365,डेस्क

 

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