मां बाराही धाम देवीधुरा में रविवार को बग्वाल की रस्म अदा की गई। फल-फूलों से खेली जाने वाली बग्वाल कोरोना के कारण लगातार दूसरी बार सांकेतिक रूप से हुई। बग्वाल से पूर्व फर्रों के साथ मंदिर की परिक्रमा और बाराही देवी का पूजन हुआ। बग्वाल में चारों खाम (लमगड़िया-वालिग, गहरवाल और चम्याल) के योद्धाओं ने हिस्सा लिया। इस बार बग्वाल सुबह 11 बजकर 2 मिनट से 11 बजकर 9 मिनट तक केवल सात मिनट चली। जिसमें 77 लोग चोटिल हुए। बग्वाल में 300 लोगों ने हिस्सा लिया। वहीं इस दौरान 1250 से अधिक दर्शक रहे। बग्वाल में न कोई वीआईपी था न कोई अफसर। बग्वाल से एक दिन पूर्व होने वाला धार्मिक अनुष्ठान शनिवार को कोरोना नियमों का पालन कर विधि-विधान के साथ हुआ। चारों खाम के देवगणों ने मां बाराही के दरबार में शीश नवाकर मंदिर परिसर में पंचगव्य का स्नान करवाया। पूजा से पहले मंदिर कमेटी ने मंदिर को सैनिटाइज करवाया। वहीं शनिवार को देवीधुरा में हुए 250 एंटीजन परीक्षण में सभी की रिपोर्ट निगेटिव आई। चार खाम के मुखियाओं ने मां बाराही और चौसठ योगिनियों की पूजा की। चारों खाम, सातों थोक के प्रतिनिधियों को मुख्य पुजारी धर्मानंद पुजारी ने आशीर्वाद दिया। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा (रक्षाबंधन) को अपने-अपने घरों में मां बाराही का पूजन करने के निर्देश दिए। पूजन में गहरवाल ख़ाम के त्रिलोक सिंह बिष्ट, वालिग खाम के बद्री सिंह बिष्ट, लमगड़िया खाम के वीरेंद्र सिंह लमगड़िया, चम्याल खाम के गंगा सिंह चम्याल, पीठाचार्य कीर्तिबल्लभ जोशी, मंदिर कमेटी के अध्यक्ष खीम सिंह लमगड़िया शामिल हुए।
बग्वाल को लेकर है खास मान्यता
कहा जाता है कि पूर्व में यहां नरबलि देने का रिवाज था, लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के एकमात्र पौत्र की बलि के लिए बारी आई तो वंशनाश के डर से उसने मां बाराही की तपस्या की। देवी मां के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने बग्वाल की परंपरा शुरू की। तबसे ये परंपरा लगातार चल रही है।
संवाद365,डेस्क