ट्रांसजेंडर और समलैंगिक विवाह मान्यता ना देने हेतु देहरादून के विभिन्न संगठनों के लोगों ने देहरादून जिलाधिकारी को एक अनुरोध ज्ञापन सौंपा

April 28, 2023 | samvaad365

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक एवं ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विवाह के अधिकारों में शीघ्रता एवं आतुरता ना दिखाते हुए विधि न्याय फैसला करते हुए इन विवाह को मान्यता ना देने हेतु देहरादून के विभिन्न संगठनों के लोगों ने देहरादून जिलाधिकारी को एक अनुरोध ज्ञापन सौंपा, जिसमें सरिता जुयाल,संगीता सेमवाल, लक्ष्मी बिष्ट, दुर्गा भट्ट, गुड्डी थपलियाल, अनीता लेखवार, शशि डबराल, अंजलि, उषा कोठारी, दीप्ति सलोनी, पूजा, स्नेहा, सुनीता, शारदा आदि महिलाएं मौजूद रही।

उक्त ज्ञापन में उन्होंने कहा की भारत देश आज सामाजिक

आर्थिक क्षेत्र में अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है वही एक अन्य समस्या भी विश की भांति समाज को खाने के लिए मुख बाए करके खड़ी है वह है समलैंगिक,ट्रांसजेंडर विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करना, यह मान्यता अपने आप में सामाजिक और प्रकृति के विपरीत है।आपको बता दें कि विधायिका ने पहले ही ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 2019 को अधिनियमित किया है और इसलिए इस समुदाय की आशंका या कथन की उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है उन्हें मूल अधिकार प्रदान नहीं किया जा रहा है यह सर्वथा गलत है ऐसे हर एक व्यक्ति के अधिकार की देखभाल और संरक्षण विधायिका द्वारा किया जा रहा है उक्त अधिनियम के अधिनियमित हो जाने पर कथित समुदाय के व्यक्तियों को यह दावा करने का मौलिक अधिकार नहीं है कि उनके विवाह को विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत पंजीकृत एवं मान्यता प्राप्त की जाए।

ज्ञापन में कहा गया कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस समुदाय विशेष द्वारा विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत अधिकार बनाने की मांग की जा रही है जबकि उक्त अधिनियम सिर्फ पुरुष और महिला पर लागू होता है इसलिए किसी भी प्रावधान को हटाने या बढ़ाने का कोई भी प्रयास अथवा उक्त अधिनियम को नए तरीके से परिभाषित करना उसे नए स्वरूप में लिखना विधायिका से कानून बनाने की शक्ति ले लेना माना जाएगा।

इस ज्ञापन के माध्यम से कहा गया है कि भारत में विवाह का एक सभ्यता गत महत्व है और एक महान और समय की कसौटी पर खरी वैवाहिक संस्था को कमजोर करने के किसी भी प्रयास का समाज द्वारा मुखर विरोध किया जाना चाहिए भारतीय सांस्कृतिक सभ्यता पर सदियों से निरंतर आघात हो रहे हैं फिर भी अनेक बाधाओं के बाद भी यह बची हुई है अब स्वतंत्र भारत में इसे अपनी सांस्कृतिक जड़ों पर पश्चिमी विचारों दर्शन एवं प्रथाओं के अधीन ओपन का सामना करना पड़ रहा है जो इस राष्ट्र के लिए व्यावहारिक नहीं है। संस्था के लोगों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर और समलैंगिक विवाह जैसे विषय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिखाई जा रही आतुरता के समाज को गन पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है न्याय की स्थापना एवं न्याय तक पहुंचने के मार्ग को सुनिश्चित करने तथा न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कायम रखने के लिए लंबित मामलों को पूरा करने एवं महत्वपूर्ण सुधार करने के स्थान पर एक काल्पनिक मुद्दे पर न्यायालय समय एवं बुनियादी ढांचे को नष्ट कर रहा है जो सर्वथा अनुचित है।

आगे विभिन्न सामाजिक संगठनों ने मांग करते हुए लिखा कि हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप उक्त विषय पर सभी हितबद्ध व्यक्तियों और संस्थाओं से परामर्श करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करें कि समलैंगिक विवाह न्यायपालिका द्वारा अवैध घोषित नहीं की जा सकती क्योंकि उक्त विषय पूर्ण रूप से विधायिका के क्षेत्राधिकार में आता है।

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