अब भी नहीं चेते तो भविष्य में झेलना पड़ सकता है जल संकट

April 29, 2019 | samvaad365

गंगोत्री ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगातार कम होना भविष्य में होने वाले जल संकट का संकेत देता है। जैव विविधता जल पर ही निर्भर करती है। यह जानकारी जल पुरुष सच्चिदानंद भारती ने दी। उन्होंने कहा कि आज तक सर्वाधिक अध्ययन गोमुख ग्लेशियर पर ही हुए हैं। आंकड़ों की मानें तो गोमुख ग्लेशियर हर वर्ष 20-22 फुट पीछे खिसकता जा रहा है। यदि भविष्य में जल संकट से बचना है तो पहाड़ों में जल संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

हिमालयन अभ्युदय सामाजिक संस्थान, उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद् एवं उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की ओर से ‘भारत में जैव विविधता संरक्षण, मुद्दे, चुनौतियां समाधान एवं दूरस्थ शिक्षा की भूमिका’ विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया। सेमिनार को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता सच्चिदानंद ने जंगलों को आग से बचाने के लिए चाल-खाल को जरूरी बताया।

इसके साथ ही जल पुरुष ने यह भी कहा कि भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से कैसे बचा जा सकता है। सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि संबोधन कर रहे उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक डॉ. एनपीएस बिष्ट ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र के सर्वांगीण विकास एवं पर्यावरण संतुलन के लिए अंतरिक्ष आधारित सूचना तकनीकों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र प्रदेश के विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों मसलन जल, जंगल और जमीन का उपग्रहों के माध्यमों से आंकडे़ एकत्र करता है। जिसके जरिए योजनाएं गठित करने में आसानी हुई है। विशिष्ट अतिथि डॉ. पुष्पेंद्र कुमार शर्मा ने सेमिनार में जैव विविधता संरक्षण पर जोर दिया।

संवाद365 / पुष्पा पुण्डीर

37255

You may also like