देहरादून: पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन के अध्याय में 1 और 2 सितंबर के दिन काले दिन के रूप में देखे जाते हैं। यूं तो किसी भी आंदोलन का बर्बरतापूर्वक दमन अंग्रेजों के समय से चलता आ रहा था, लेकिन आजाद भारत में 42 साल के बाद दो गोलीकांड उत्तराखंड राज्य आंदोलन में हुए थे, 1 सितंबर 1994 को खटीमा में उत्तराखंड के राज्य आंदोलनकारी शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन तभी पथराव शुरू हो गया और पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलानी शुरू कबर दी। अचानक हुई इस गोलीबारी से भगदड़ मच गई। जिसमें उत्तराखंड के आठ आंदोलनकारी शहीद हो गए। और सैकड़ों घायल हो गये. बताया जाता है कि इस दौरान पुलिस ने लगभग 8 राउंड गोली चालाई। यह भी कहा जाता है कि पुलिस ने चार लाशों को उठाकर थाने के पीछे एलआईयू कार्यालय की एक कोठरी में छुपा दिया, देर रात के अंधेरे में चारों शवों को शारदा नदी में फेंक दिया. घटना स्थल से बराबद अन्य चार शवों के आधार पर पुलिस ने अगले कई सालों तक मारे गये लोगों की संख्या केवल चार बताई. इस गोलीकांड में शहीद होने वाले थे
प्रताप सिंह
सलीम अहमद
भगवान सिंह
धर्मानन्द भट्ट
गोपीचंद
परमजीत सिंह
रामपाल
भुवन सिंह
खटीमा गोलीकांड के ही अगले दिन 2 सितंबर को मसूरी में इस बर्बरता का विरोध आंदोलनकारियों के द्वारा किया गया। लेकिन यहां पर भी पुलिस ने बर्बर चेहरा दिखाया। प्रशासन से बात कर रही दो सगी बहनों को पुलिस ने गोली मार दी। इसका विरोध करने पर अंधाधुंध फायरिंग की गई। जिसके बाद जनता का विरोध और भी ज्यादा हिंसक हो गया। मसूरी गोली कांड में शहीद होने वालों में
बेलमती चैहान
हंसा धनाई
बलबीर सिंह
धनपत सिंह
मदन मोहन ममगाईं
राय सिंह बंगारी
इन दोनो घटनाओं ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन में आग में घी डालने का काम कर दिया, इसके बाद जगह जगह पर जनसभाएं की गई। और आखिरकार 9 नवंबर 2000 को अलग उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया।
https://youtu.be/uO44nikrDyk
यह खबर भी पढ़ें-नरेंद्रनगर: आगरा खाल की नैसर्गिक छटा देख अभिभूत हुए बाबा रामदेव
संवाद365/डेस्क