अपने गीतों से उत्तराखंड को एक नई पहचान दिलाने वाले गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी का आज जन्मदिन ,संवाद 365 उनके लंबी उम्र की कामना करता है

August 12, 2021 | samvaad365

नरेंद्र सिंह नेगी उत्तराखंड लोग गीतों का वो नाम जिसने अपने गीतों के जरिए पहाड़ों के जीवन की व्यथा अपनी मधुर और मनमोहक स्वर के जरिए कुछ इस तरह सुनाई की अपनी कला का माहिर ये गढ़रत्न और गढ़गौरव आज हमारी संस्कृति परंपरा और संस्कार का पर्याय बन चुका है ।आज ऐसी कोई छोटी से छोटी विलुप्त हो चुकी या अभी भी बोली या करी जाने वाली संस्कृति से जुड़ी कोई बात या परंपरा नहीं है जिसे नेगी जी ने अपने लेखन औऱ स्वर के जरिए लोगों के कानों तक ना पहुंचाया हो ।आज नेगी जी का जन्मदिन है। 12 अगस्त 1949 को नेगी जी का जन्म पौड़ी में हुआ था। बाजबुंद औऱ झुमैलो जैसे लोकगीतों से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने गाना शुरु किया। घर की परेशानियों और तंग हालातों के बीच उन्होंने लिखना शुरु किया तो उनके गीतों में पहाड़ों और मनुष्य के मर्म की बात अभिव्यक्त होने लगी।

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कैसेट्स से लेकर सीडी और आज के डिजिटल जमाने तक कोई ऐसा दौर नहीं रहा जब नेगी जी के गानों को सुनने के लिए लोगों में उत्सुक्ता और इंतजार ना रहा हो। नेगी जी ने अपनी शुरुआत आकाशवाणी से 1976 में बुरांस एल्बम के जरिए की, जिसके बाद 1982 में उन्होंने अपनी पहली ऑडियो केसेट ‘ढेबरा हर्ची गेनी’ रिलीज की। जिसके बाद नेगी जी के गाने आते गए और हर प्रदेश वासी को कभी रुलाया, कभी हंसाया, कभी चेताया तो कभी नचाया भी. नेगी जी की छुयाल, दगडि्या, घस्यारी, हल्दी हाथ, नौछमी नारेणा, सल्यान सयाली, रुमुक, माया को मुण्डारो, नयु नयु ब्यो छो, समदोला का द्वी दिन, धारी देवी जैसी एल्बम सुपर हिट रहीं।

 

नेगी जी के गाए मांगल गीतों के बिना आज भी शादियां को अधुरा ही माना जाता है। नेगी जी की जादुई आवाज और संगीत से ऐसा लगता है मानों खुद देवी देवता आशीर्वाद देने के लिए शादी में पहुंच गए हों।
नेगी जी के खुदेड़ गीत सुनकर आज भी बुजुर्गों से लेकर युवाओं की आंखें नम हो जाती हैं। टिहरी पर उनके गीत आज टिहरी की यादों को अमर कर देते हैं। टिहरी पर नेगी जी के गीतों को सुनकर सिर्फ टिहरी में रहने वाले लोग ही नहीं बल्की बाहर रहने वाले लोग भी उस दर्द को, उस पीड़ा को महसूस कर पाते हैं।

नेगी जी की गढ़वाली भाषा में शानदार पकड़ का ही असर है की उनके गीत हमें अपनी पुरानी परंपरा और संस्कृति की याद दिला देते हैं और उसे आज भी हमारे जहन में जिंदा रखा है। गीतों को लिखने और गाने में नेगी जी को मानों मां सरस्वती ने विशेष वरदान दिया है। कैसे वो कभी पहाड़ों में महिलाओं की जिंदगी पर मार्मिक गीतों के जरिए उनकी व्यथा दर्शाते हैं तो कभी मेहनतकशों के शोषण के विरोध को अपना स्वर देते हैं, कभी आहवान गीत के जरिए लोगों को जगाने का काम भी करते हैं, तो कभी लोगों और पहाड़ों के ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ नेताओं पर कटाक्ष भी अपने गीतों के जरिए करते हैं।

 

नरेंद्र सिंह नेगी का जीवन पहाड़ और पहाड़ियों की बात करते हुए निकला है। अभी तक 1000 से ज्यादा गीत गाने वाले नेगी जी करीब 5 दशकों से लोक संस्कृति, लोक गाथा, प्रेम, देवी देवताओं, जन संदेश, पहाड़ और पहाड़ी नारियों की व्यथा, खुदेड़ और खैरी को अपने स्वर के जरिए लोगों तक पहुंचा रहे हैं। उनके गीतों के एक-एक शब्द पहाड़ों की गाथा को व्यक्त करते हैं। उन्होंने पहाड़ की संस्कृति और पहाड़ के मुद्दों को सिर्फ प्रदेश के कौने-कौने तक ही नहीं बल्की देश विदेश तक पहुंचाया है। पहाड़ों से निकलकर, पहाड़ों के लिए और पहाड़ों में रहकर गढ़वाल रतन ने बेटी, ब्वारी, खेत, खल्यांण से लेकर क्रांतिकारी गीतों से हमेश हमें जागरुक करने का काम किया है और करते रहेंगे। संवाद 365 उन्हें जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं देता है और उनकी लंबी उम्र की कामना करता है।

संवाद 365, विकेश शाह

 

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