एक महिला ऐसी भी…अपने लिए तो हर कोई जीता है, लेकिन दूसरों के लिए कुछ कर के जीने वालों का अंदाज़ ही कुछ अलग होता है जी हां हम बात कर रहे हैं देहरादून निवासी गरिमा गुप्ता की। एमबीए करने के बाद गरिमा गुप्ता ने नौकरी की, लेकिन कुछ समय बाद नौकरी भी छोड़ दी। गरिमा का सपना कुछ अलग करने का था। जिसके लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। नारी सशक्तीकरण की दिशा में काम कर रहीं देहरादून की गरिमा गुप्ता ने बैंक से लोन लेकर अपनी छोटी सी कंपनी शुरू कर दी।
जहां वह महिलाओं को ईको फ्रेंडली बैग बनाने का प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार उपलब्ध करा रही हैं।गरिमा ने बताया कि चार साल पहले पिता एचएस राय की मौत के बाद उन्होंने महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए अपने पिता के नाम से कंपनी शुरू की। यहां वह महिलाओं को जूट और कैनवास के ईको फ्रेंडली बैग बनाना सिखा रही हैं।
गरिमा की एक कंपनी गाजियाबाद के मुरादनगर में है और अब उन्होंने देहरादून में भी यह काम शुरू कर दिया है। गरिमा ने बताया कि पूरे देश से महिलाएं उनसे ये बैग खरीद कर ऑन लाइन शॉपिंग वेबसाइट पर बेच रही हैं और पैसे कमा रही हैं।
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देहरादून/संध्या सेमवाल