बागेश्वर में ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले में कुली बेगार प्रथा के बाद अब प्राधिकरण गजट नोटिफिकेशन सरयू नदी के हवाले किया गया । सन 1929 में कुली बेगार प्रथा के विरोध की तर्ज पर अब 2019 में बागेश्वर की जनता ने जिला विकास प्राधिकरण के शासनादेश को सरयू नदी के हवाले कर दिया। विकास प्राधिकरण हटाओ मोर्चा के बैनर तले विभिन्न जिलों से आये बुद्धिजीवियों, चिंतकों और समाजसेवियों ने अपना समर्थन देकर प्राधिकरण का खुलकर विरोध किया गया ।
अल्मोड़ा में नैनीसार आंदोलन के अगुवा पीसी तिवारी, कई जनआंदोलनों में अग्रहणी रहे लेखक राजीव लोचन साह, साहित्यकार चारू तिवारी, वरिष्ठ कामरेड इंदिरेश मैखुरी और वरिष्ठ योगेश भट्ट वे नाम हैं जिन्होंने जनआंदोलनों और शुरू कर उन्हें अंजाम तक पहुंचाया। यही नाम आज बागेश्वर के सरयू नदी के किनारे विकास प्राधिकरण के विरोध के लिये एकजुट हुये। सभी समाजसेवियों और बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में विकास प्राधिकरण के गजट नोटिफिकेशन को सरयू नदी में प्रवाहित किया गया। इससे पूर्व जन आंदोलन के गीतों से जनता में अधिकारों की अलख जगाई गयी।
इस दौरान आयोजित जनसभा आसपास बने राजनीतिक पंडालों पर भारी पड़ती नजर आयी। वक्ताओं ने कहा कि 1929 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अंग्रेजों द्वारा बनाये गये काले कानून कुली बेगार प्रथा का अंत बागेश्वर के इसी सरयू नदी के तट पर किया था। गांधी जी के इस आंदोलन से देश की ब्रितानी सरकार हिल गयी और उन्हें काले कानून को वापस लेना पड़ा। वक्ताओं ने कहा कि प्राधिकारण बिना सोचे समझे लागू किया गया काला कानून है। इस कानून से पहाड़ का विकास रूक जायेगा साथ ही एक छोटा से किसान को अपनी ही जमीन पर भवन निर्माण के लिये सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने होंगे। वक्ताओं ने कहा कि इस तरह के कानून को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। आगे सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
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बागेश्वर/हिमांशु गढ़िया