हौसले में दम हो तो व्यक्ति अपनी तकदीर अपने हाथों से लिखता है। इस बात को सही साबित किया है उत्तराखंड की एक ऐसी दिव्यांग ने जिसने अपने हालातों को खुद पर हावी नहीं होने दिया। ऋषिकेश की श्यामपुर न्याय पंचायत के ग्राम गौहरीमाफी निवासी दिव्यांग पुष्पा रावत की कहानी कुछ ऐसी ही है। पुष्पा अपने दोनों हाथों से दिव्यांग है बावजूद इसके पुष्पा ने अपने पैरों से अपनी तकदीर लिख डाली, जिसकी वजह से वो आज हर किसी के लिए नारी सशक्तीकरण की मिसाल बन चुकी है।
बचपन से ही पुष्पा को पढ़ाई का शौक था लेकिन दिव्यांग होने की वजह से वह अन्य बच्चों के साथ स्कूल नहीं जा सकती थी, जिसके बाद घर के पास ही रहने वाले स्थानीय संत बाबा गैंडा ङ्क्षसह ने नन्हीं पुष्पा को पैर का अंगूठा पकड़कर वर्णमाला लिखाने का अभ्यास कराया। जिसके बाद पुष्पा अपने पैरों से लिखने में पारंगत हो गई। जब पुष्पा थोड़ी बड़ी हुई तो वह छठी कक्षा में प्रवेश लेने जूनियर हाईस्कूल श्यामपुर गई लेकिन स्कूल के प्रधानाध्यापक ने पुष्पा के दाखिले के लिए इन्कार कर दिया। मगर कहते हैं कि अगर आप में कुछ कर दिखाने का जुनून हो तो आपको सफलता जरूर मिलेगी। दाखिले से इंकार करने के बाद जब पुष्पा ने पैरों के जरिए लिखकर दिखाया तो हिंदी के शिक्षक डॉ. जगदीश नौडिय़ाल (जग्गू) को बालिका में पढ़ाई का जुनून नजर आया और उन्होंने पुष्पा को स्कूल में दाखिला दिला दिया।
आठवीं पास करने के बाद जब पुष्पा रायवाला इंटर कॉलेज गई तो तब डॉ. जगदीश नौड़ियाल भी पदोन्नत होकर वहां आ चुके थे। उन्होंने फिर पुष्पा की शिक्षा का भार उठा लिया। वर्ष 1992 में पत्रकार विनोद जुगलान विप्र के प्रयासों से पुष्पा के संघर्ष की कहानी जब गृहशोभा में छपी तो दिल्ली दूरदर्शन के तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर विनोद रावत ने इसका संज्ञान लिया। उन्होंने अपनी टीम पुष्पा के घर भेजकर एक वृत्तचित्र ‘फेस इन द क्राउड’ तैयार कराया और उसका प्रसारण पूरे देश में किया। अब पुष्पा की मदद को हाथ उठने लगे। दिव्यांग पुष्पा रावत का वृत्तचित्र देखकर श्री भरत मंदिर स्कूल सोसायटी के सचिव हर्षवर्धन शर्मा इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सोसायटी की ओर से पुष्पा की शिक्षा-दीक्षा का पूरा जिम्मा उठाया। इसके साथ ही दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष विद्यालय खोलने का निर्णय भी लिया गया।
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देहरादून/काजल