पहाड़ पर रोजगार का जरिया बनी होम स्टे योजना, जानिए क्या है खास…

March 27, 2019 | samvaad365

एक तरफ भले रोजगार की तलाश में पहाड़ की एक बड़ी आबादी मैदान की दौड़ लगा रही हो और वहां भी उन्हें सम्मानजनक रोजगार नहीं मिल रहा है वहीं पहाड़ में कुछ ऐसे जुनूनी युवा भी हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि को ही रोजगार का क्षेत्र चुना है। युवा न केवल रोजगार के नये आयाम स्थापित कर रहे हैं बल्कि अपनी संस्कृति सभ्यता के संरक्षण के साथ उन्हें आगे बढ़ाने का कार्य भी कर रहे हैं।

जनपद रूद्रप्रयाग के विकास खण्ड उखीमठ के किमाण गांव निवासी डॉ कैलाश पुष्पवाण आज पहाड़ के लोगों के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं। खास तौर पर उन लोगों के लिए जो पहाड़ को केवल मिट्टी पत्थर का ढेर समझकर यहां से पलायन कर करते हैं। कैलाश पुष्पवाण अपने पहाड़ी मकान पर होम स्टे योजना आरम्भ कर रोजगार के साथ-साथ पहाड़ी व्यंजनों को देश-दुनियां के पर्यटकों और तीर्थाटनों को खिलाकर पहाड़ की संस्कृति और यहां के परिवेश, रहन-सहन का प्रचार प्रसार भी कर रहे हैं। वनस्पति विज्ञान से पीएचडी कर डाॅ पुष्पवान 2008 से 2016 बतौर पर्यावरण विशेषज्ञ के रूप में वल्र्ड बैंक में कार्य कर चुकें हैं। केदारघाटी में लगातार प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहे यहां के लोगों की पीड़ा और लगातार पलायन से सूने होते गांवों की बदहाली उनसे देखी न गई। उनके मन में एक विचार लगातार उन्हें अंधर से कुरेध रहा था कि यहां पलायन कर रहे लोगों के लिए कुछ किया जाय। नौकरी को छोड़कर डाॅ पुष्पवाण ने अपनी सोच को व्यवहार में उतारने की ठानी और अपने पहाड़ के उत्पादों को आजीविका का जरिया बनाया। पहले उन्होंने उखीमठ में एक जूस अचार की स्थापना कर डाली जिसमें उन्होंने स्थानीय फलों से उत्पादन शुरू कर इस यूनिट में 15 स्थानीय लोग को रोजगार दिया गया है। अपने पारम्परिक मिट्टी पत्थरों के तिवारी-खोली की मकान पर होम स्टे योजना शुरू कर दी।

पर्यटकों को यहां खाने में मंडुवे की रोटी, भंगजीरा की चटनी, पहाड़ी चावल, चैंसा, गौथाणी, फाणू, कंडाली का साग, झंगोरे की खीर और अरसे-रोटने और पहाड़ी व्यंजन दिये जाते हैं। इस कार्य में उनके परिवार के लोग भी पूरे मनोयोग से लगे हुए हैं।  वर्तमान में कैलाश पुष्पववाण के पहाड़ी घर में न्यूजीलैंण्ड, फ्रांस, इंगलैंड के साथ ही भारतवर्ष के कौने-कौने से पर्यटक रहने के लिए आते हैं। जबकि पर्यटकों को यहां पहाड़ के परम्परिक कलचर रहन-सहन से रूबरू होकर काफी प्रभावित होते हैं। जबकि पहाड़ के इस पारम्परिक मकान में कई फिल्मों और गीतों की शूटिंग करने के लिए भी कलाकार पहुंचते हैं।  कैलाश पुष्पवाण की यह पहल वास्तव में यहां से रोजगार की तलाश में पलायन करने वाले लोगों के लिए एक प्रेरणा है। इस सकारात्मक पहल को जनपद के अन्य हिस्सों में शुरू किया जाता है तो इससे न केवल घर बैठे रोजगार के संसाधन विकसित होंगे बल्कि हमारी संस्कृति और सभ्यता का संरक्षण भी होगा।

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रुद्रप्रयाग/कुलदीप राणा

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