आधुनिक समाज में जहां हर कोई अपनी जिंदगी में इतना व्यस्त हो गया है कि उसे तीर्थ स्थलों पर जाना तो दूर पूजा-पाठ करने तक का भी समय नहीं मिलता है। इस बात से विपरीत अगर बात उत्तराखंड की लोक संस्कृति और परंपरा की बात की जाए तो यहां हर साल लोग भगवान की आराधना करने पहुंचते हैं। उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जहां के कण-कण में ईश्वर वास करता है।
पहाड़ की खूबसूरती से लेकर आध्यत्म, भक्ति तक उत्तराखंड देश ही नहीं दुनिया भर में जाना जाता है। वहीं उत्तराखंड का जौनसार-बावर क्षेत्र अपनी एक खास परंपरा के लिए जाना जाता है। जिसे लोटा-नमक परंपरा के नाम से जाना जाता है। इस परंपरा में जो खास बात है वो आपको हैरान कर देगी, दरअसल इस परंपरा को जुबानी संकल्प माना जाता है, यानि एक बार अगर किसी ने कोई जुबान दे दी तो वह अपनी बात से न मुकर सकता है और न ही पीछे हट सकता है। ये परंपरा भले ही किसी अन्य व्यक्ति के लिए महत्व न रखे, लेकिन जौनसार-बावर क्षेत्र के लोगों के लिए ये परंपरा बहुत महत्वपूर्ण है। इस परंपरा के जरिए संकल्प लेने वाला व्यक्ति जौनसार-बावर के कुल देवता महासू महाराज को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा लेता है- मैं जो वचन दे रहा हूं, उस पर प्राण-प्रण से अटल रहूंगा। अगर मैनें या मेरे परिवार ने वचन तोड़ा तो मेरा और मेरे परिवार का अस्तित्व ठीक उसी तरह समाप्त हो जाएगा, जैसे पानी से भरे लोटे में नमक का हो जाता है। इतना ही नहीं किसी दुविधा या संदेह या किसी विवाद के निपटारे के लिए भी इस परंपरा का सहारा लिया जाता है। अटूट विश्वास की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है, और इसे तोड़ने की हिमाकत आज तक किसी ने नहीं की।
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देहरादून/काजल