धनोल्टी: कोरोना वायरस वैश्विक महामारी ने जहां देश की ही नहीं अपितु विश्व की आर्थिक व्यवस्था पर अपना प्रभाव डाला है। वहीं वैश्विक महामारी के इस दौर में लाखों प्रवासियों को प्रत्येक राज्य की सरकारें अपने राज्य वापस लाने का काम कर रही है। किन्तु वैश्चिक महामारी के इस दौर में लोक कलाकारों, संगीतकारो, गायकों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। स्टेज प्रोग्राम के जरिए अपनी आजीविका चलाने वाले बड़े-बड़े महोत्सव में अपनी भागीदारी निभाने वाले बड़े गायकों के साथ मंच पर नृत्य करने वाले मंच को संगीतमय करने वाले ‘इन कलाकारों का आगे क्या होगा वो तो भगवान ही जाने किन्तु जिस प्रकार से कोरोना वायरस बढ़ रहा है उसे देखते हुए आगे कितने समय तक स्टेज प्रोग्राम नहीं होंगे ये कहा नहीं जा सकता।
मैं बात बड़े गायकों की तो नहीं कर रहा किन्तु उन बड़े गायकों के साथ मंच की शोभा बढ़ाने वाले उन तमाम कलाकरों की जरूर कर रहा हूं जो कम पैसे मिलने पर भी मंचो पर अपनी प्रस्तुति देते हैं, व अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। लॉकडाउन, सामाजिक दूरी के चलते कब तक स्टेज प्रोग्राम नहीं होते कुछ कह पाना मुश्किल है किन्तु वर्तमान हालात को देखते हुए लगता है कि काफी समय तक स्टेज प्रोग्राम होने मुश्किल हैं।
ऐसे में इन कलाकारों के सामने रोजगार व रोजी रोटी का संकट गहराता चला जा रहा है। उत्तराखण्ड राज्य की बात करें तो यहां पर सह गायक, लोक कलाकार, संगीतकारों को एक स्टेज प्रोग्राम से वैसे ही बहुत कम धनराशि दी जाती थी जैसे तैसे करके कलाकार अपनी आजीविका चला पा रहे थे किन्तु 2 महिने से कोई भी स्टेज प्रोग्राम न होने के कारण वे कलाकार किस हाल में हैं उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। सरकार को लोक संस्कृति के इन रक्षकों की सुध लेने की आवश्यकता है नहीं तो सारे कलाकार आज कोरोना से ज्यादा अपने भविष्य की चिन्ता से परेशान है।
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संवाद365/सुनील सजवाण