‘केएम करियप्पा’ जिनके सम्मान में हम सेना दिवस मनाते हैं

January 15, 2020 | samvaad365

15 जनवरी यानी कि भारतीय सेना दिवस, इस दिन को भारतीय सेना के सम्मान में और भारत के पहले कमांडर इन चीफ यानी कि सी इन सी के सम्मान में मनाया जाता है, कोडनान मडप्पा करियप्पा यानी कि केएम करियप्पा वो नाम है जिसने राॅयल ब्रिटिश आर्मी से लेकर भारतीय सेना तक कई सम्मान अपने नाम किए, कई लोगों को प्रभावित किया और बहादुरी के ऐसे किस्से बनाए कि उस वक्त हर कोई इनका सम्मान करता था, देश के लिए अपने बेटे तक की परवाह न करने वाले करियप्पा रिटायरमेंट के बाद भी सेना का मनोबल बढ़ाते रहे, बेटे की परवाह न करने वाला किस्सा भी आपको बताएंगे.

कौन थे केएम करियप्पा ?

केएम करियप्पा का जन्म 28 जनवरी 1899 को दक्षिण भारत के कुर्ग में हुआ था, परिवार किसान पृष्ठभूमि का था लेकिन पिता जी रेवेन्यू डिपार्टमेंट में काम करते थे, दौर वो था जब भारत आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था, चार भाई और दो बहनों में करियप्पा दूसरे नंबर के थे. 1917 में सेन्ट्रल हाईस्कूल मदिकरी से पढ़ाई की उसके बाद प्रेजिडेंसी काॅलेज चेन्नई गए ये वहीं काॅलेज था, जहां पर सीवी रमन भी पढ़े, करियप्पा को बचपन से ही सेना में जाना था, इसके बाद करियप्पा ने सेना ज्वाइन की हालांकि उस वक्त भारतीय सेना नहीं होती थी, राॅयल ब्रिटिश आर्मी के लिए एनडीए या सीडीएस जैसा एग्जाम भी नहीं होता था. एक विज्ञापन के जरिए भर्ती होती थी. करियप्पा जब भर्ती हुए तो 70 अभ्यार्थियों में उनका 42वां नंबर था. 1 दिसंबर 1919 को करियप्पा ग्रेजुएट हुए.

सेना में करियप्पा

केएम करियप्पा को बचपन से ही सेना का जुनून था, ट्रेनिंग के दौरान भी वह अपने बैच के टाॅपर थे, सबसे पहले उन्हें 88 कार्नेटिक इंफेंट्री मिली फिर डोगरा और फिर राजपूत. सेना में करियप्पा के प्रमोशन काफी तेजी से होते चले गए, गजब की स्किल नेतृत्व सबकुछ था करियप्पा में, 1919 में वह सेकेंड लेफ्टिनेंट थे, 1920 में लेफ्टिनेंट, 1927 में कैप्टन, 1938 में मेजर. क्वेटा स्टाफ काॅलेज कोर्स ज्वाइन करने वाले वह पहले भारतीय अफसर थे.

 दूसरे विश्व युद्ध में करियप्पा

1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया, भारत ब्रिटेन की काॅलोनी थी, और ब्रिटेन यूरोप में काफी शक्तिशाली था, एशिया में जापान का खतरा काफी ज्यादा था, इसलिए भारतीय सैनिक भी इस युद्ध में भाग ले रहे थे. करियप्पा बर्मा में काफी समय तक रहे उन्होंने इस युद्ध में वीरता का प्रर्शन किया और कई आॅपरेशन किए इसी दौरान 1942 में उन्हें एक्टिंग लेफ्टिनेंट कर्नल और 2 महीने बाद लेफ्टिनेंट कर्नल बनाया गया, इससे पहले किसी भी भारतीय को इतनी बड़ी पोस्ट पर नहीं रखा गया था. कारण यही था जहां करियप्पा को भेजा गया वहां उन्होंने उसके परिणाम और बेहतर परिणाम सामने रखे, 1945 में जब युद्ध खत्म हुआ तो 1 नवंबर को उन्हें कर्नल बनाया गया, उसी साल ब्रिगेडियर बनाया गया.

आजादी के बाद

15 अगस्त 1947 ये वो तारीख थी जिस दिन भारत आजाद हुआ, आजाद होते ही करियप्पा लेफ्टिनेंट  कर्नल बने भारतीय सेना का गठन हुआ, इंपीरियल डिफेंस काॅलेज लंदन में जाने वाले भी वह पहले भारतीय थे. 15 जनवरी 1949 ये वो दिन था जब करियप्पा को चीफ आॅफ द इंडियन आर्मी बनाया गया हालांकि कमांड 26 जनवरी को ही मिली, लेकिन इसी दिन को आज भारतीय सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है.

पाकिस्तान के साथ युद्ध

आजादी के बाद साल 1947 में विभाजन के बाद कश्मीर मामला सामने आया, कश्मीर में कबाली अटैक के खिलाफ करियप्पा के नेतृत्व मे अक्टूबर 1947 में भारत के आॅपरेशन शुरू हुए जिनमें आॅपरेशन किपर, ईजी, बाइसन चलाए गए जिसके बाद नौशेरा, पुंछ, जोजी ला, द्रास, कारगिल जैसी जगहों को भारतीय सेना ने कैप्चर किया. साल 1986 में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधी दी गई हालांकि पहले फील्ड मार्शल सैम मानिकशाॅ थे.

जब करियप्पा के बेटे को पाकिस्तान ने बंधक बनाया

केएम करियप्पा के दो बच्चे थे, बेटे का नाम नंदा था वह भी इंडियन एयर फोर्स में थे, साल 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ते हुए वह पकिस्तान की सीमा में जा घुसे जिसके बाद उन्हें पाकिस्तान ने बंधक बना दिया, पाकिस्तान के जनरल उस वक्त थे अयूब खान जैसे ही पाकिस्तान को पता चला कि नंदा करियप्पा के बेटे हैं वैसे ही पाकिस्तान में अफरा तफरी मच गई. अयूब खान करियप्पा के जूनियर थे, अयूब खान ने करियप्पा को फोन किया और कहा कि हम आपके बेटे को छोड़ देंगे, लेकिन करियप्पा के शब्द बड़े ही प्रेरित करने वाले थे, उस दौरान करियप्पा ने कहा कि वह मेरा बेटा है इसलिए उसके साथ खास व्यवहार करने की जरूरत नहीं है युद्ध के सभी कैदी छोड़े जाएंगे तो मेरे बेटे को भी छोड़ना अन्यथा उसके साथ ही बाकियों के जैसा व्यवहार हो. हालांकि इसके बाद सभी कैदियों को छोड़ दिया गया था. नंदा भी एक जाबांज सैनिक थे, वह एयर मार्शल की पोस्ट से रिटायर हुए.

साल 1953 में रिटायर होने के बाद भी करियप्पा ने हर युद्ध में भारतीय फौज का मनोबल बढ़ाया. 15 मई साल 1993 में सोते समय उन्हें हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया.

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