रुद्रप्रयाग जनपद के गुप्तकाशी क्षेत्र बणसू जाख मंदिर में बैसाखी पर्व विशेष रूप से आस्थावान लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। जाख देवता को यक्षराज के नाम से भी जाना जाता है। जाखमेला धार्मिक भावनाओं एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ा हुआ है। इस मेले में भगवान जाखराजा के पश्वा दहकते अंगारों के बीच नृत्य कर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं।
मेले का यह दृश्य आस्थावान लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। दूर दराज से बड़ी संख्या में भक्त इस अवसर पर दर्शन हेतू पहुंचते हैं। वहीं उखीमठ के विभिन्न गांवों के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों की आस्था जाख मेले से जुड़ी हुई है। यह मेला प्रतिवर्ष बैसाखी के दिन ही लगता है। चौदह गांवों के मध्य स्थापित जाखराजा मंदिर में प्रतिवर्ष की भांति हर वर्ष देवशाल व कोठेडा के ग्रामीणों के आपसी सहयोग से मेले की तैयारियां शुरू कर दी जाती है। मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व ही भक्तजन बड़ी संख्या में पौराणिक परंपरानुसार नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकडियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करते हैं तथा भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए हर वर्ष अस्सी कुंतल से अधिक कोयला एकत्रित किया जाता है। बैसाखी के पर्व पर मेले के दिन नारायणकोटी गांव से ढोल-दमाऊ के साथ भगवान जाखराजा के पश्वा कोठेडा व देवशाल होते हुए मंदिर परिसर पहुंचते हैं। इसके बाद पूजा-अर्चना एवं ढोल सागर पर देवता के पश्वा को अवतरित किया जाता है। तब देवता के पश्वा नंगे पांव अग्निकुंड में प्रवेश करके दहकते अंगारों के बीच काफी देर तक नृत्य करते हैं, और वहीं से अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। इस मेले को देखने के लिए दूर-दराज के गांवों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से जाख मेले में आकर जाखराजा के दर्शन करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। तो आप भी दर्शन के लिए बणसू जाख मंदिर अवश्य जाए।
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संवाद 365/कुलदीप