उत्तराकण्ड की लोकसंस्कृति अपने आप में अनोखी और अद्भुत है । कई त्योहार आते हैं उत्तराखण्ड में जो अपने साथ ढेर सारी खुशियां भी लाते हैं उन्हीं में से एक खुशियों का त्योहार है भिटोली । भिटोली का हर विवाहित बहन और बेटियों को साल भर से खासा इंतजार रहता है ।भिटौली का शाब्दिक अर्थ है – भेंट करना। प्रत्येक विवाहित लड़की के मायके से भाई, माता-पिता या अन्य परिजन चैत्र के महीने में उसके ससुराल जाकर उससे मुलाकात करते हैं। इस अवसर पर वह अपनी लड़की के लिये घर में बने व्यंजन जैसे आटे, चावल, दूध, घी, चीनी, तेल, खीर, मिठाई, फल और साथ में साड़ी ,सूट सलवार, गहने लेकर जाते हैं। शादी के बाद की पहली भिटौली कन्या को वैशाख के महीने में दी जाती है और उसके पश्चात हर वर्ष चैत्र मास में दी जाती है। लड़की चाहे कितने ही सम्पन्न परिवार में ब्याही गई हो उसे अपने मायके से आने वाली “भिटौली” का हर साल इन्तजार रहता है। लेकिन बदलते सामाजिक परिवेश में इनका स्वरूप भी बदल गया है।आज जहां आदमी अत्यधिक व्यस्त है।वही दूर संचार के माध्यमों ने लोगों के बीच की दूरी को घटाया है।जहां पहले महीनों तक बेटियों से बातचीत नहीं हो पाती थी।या उनको देखना भी मुश्किल हो जाता था।आज स्मार्टफोन ,कंप्यूटर के जमाने में आप उनको आसानी से देख सकते हैं।या उनसे आसानी से बात कर सकते हैं वह भी जब चाहो तब।आज पहले की तरह ढेर सारे व्यंजन बनाकर ले जाते हुए लोग बहुत कम दिखाई देंगे।आजकल लोग मिठाई ,वस्त्र या बेटी को जरूरत का कोई उपहार देते हैं।और व्यस्तता के कारण भाई या मां-बाप बहन के घर नहीं जा पाते हैं।तो पैसे भेज देते हैं।आजकल पैसे भेजने के भी कई सारे तरीके हैं। जो बहुत आसान हैं।भिटौली देने के तरीके भले ही बदल गए हो।लेकिन परंपरा आज भी जैसी की तैसी बनी है।
(संवाद 365/दलीप कश्यप)
यह भी पढ़ें- पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तीरथ सरकार से खफा ..बदलते फैसलों पर जताई नाराजगी