18 वर्ष के जवान उत्तराखण्ड में भले ही सरकारें चुनावों के वक्त अपने घोषणा पत्रों में युवाओं को रोजगार देने की बातें करती हो, यहां की प्राकृतिक सम्पदा से रोजगार के संसाधन विकसित करने का दम क्यों न भरती हो लेकिन हकीकत आज भी सरकारों के वादों के उलट नजर आ रही है। इन दिनों पहाड़ों के जंगलों में बुराँश की बम्पर पैदावार हो रखी है लेकिन सरकारों की उदासीनता के चलते यह बर्बाद हो रहा है।
इस वर्ष जनपद रूद्रप्रयाग में पांच हजार से आठ हजार फीट की ऊंचाई पर खिलने वाले बुराँश की खूब पैदावार हो रखी है, लेकिन इन फूलों के उपयोग को लेकर सरकारों द्वारा कोई कारगर नीति न बनाये जाने के कारण ये जंगलों में ही बर्बाद हो रहे हैं। जनपद के जखोली क्षेत्र के मयाली, बजीरा, पौंठी, उखीमठ, मक्कूमठ, चोपता दुगलबिट्टा, कनकचैंरी, घिमतोली, खंडपतियां, हरियाली कांठा समेत कई ऊँचाई वाले स्थानों पर बम्पर बुराँश की पैदावार हो रखी है। लेकिन इन फूलों के विपरणन और दोहन की राज्य गठन के अठारह साल बाद भी कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई गई हैं, जिस कारण ये फूल जंगलों में बर्बाद हो रहे हैं, ऐसे में यहां के काश्तकारों और युवाओं को भारी निराश हो रही हैं।
आपको बता दे कि बुराँस का रस हृदय के लिए अत्यंत लापकारी है। जबकि यह फूल अन्य औषधीय गुणों से भी भरपूर है। रूद्रप्रयाग जनपद में प्रति वर्ष लाखों टन बुरांस के फूल का उत्पादन होता है, लेकिन सरकारों की रोजगारपरख नीति न होने के कारण इस फूल का उपयोग नहीं हो पा रहा है। कुछ लघु एवं कुटीर उद्योगों द्वारा इसका जूस निकाला तो जाता है लेकिन वन विभाग द्वारा इस फूल के दोहन पर प्रतिबंध लगाये जाने के कारण इसका रोजगार व्यापक स्तर स्तर पर नहीं हो पा रहा है। जबकि चार धाम यात्रा में देश-विदेश से आने वाले लाखों तीर्थ-यात्रियों और पर्यटकों की बड़े पैमाने पर बुरांस के जूस की डिमांड है। अगर इस ओर सरकारें गम्भीर होती और बुरांस के समुचित विपणन, और देहन की व्यवस्था होती तो न केवल यहां के युवाओं को घर बैठे रोजगार मिलता बल्कि पहाड़ से हो रहे पलायन पर भी अँकुश लगता और सरकार को भी एक अच्छा राजस्व प्राप्त होता।
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रुद्रप्रयाग/कुलदीप राणा