उत्तराखंड का वीर सपूत वीर शहीद केसरी चंद, चकराता में मनाया गया मेला…

May 3, 2019 | samvaad365

देहरादून:  देवभूमि के साथ ही उत्तराखंड को वीरों की धरती के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड  का इतिहास अपने भीतर शौर्य और बलिदान के कई किस्से समेटे हुए है। भारत की स्वतंत्रता, प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध और कारगिल जैसे कई बड़े युद्धों में उत्तराखंड के कई जवानों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। ऐसे ही एक वीर अमर शहीद केसरी चंद है, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में अपने प्राणों की आहुति दे दी। भारत को गुलामी से आजाद करने के लिए केसरी चंद 1945 में फांसी पर लटक गए।

बता दें कि शहीद केसरी चंद देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र जौनसार बावर के क्यावा गांव के रहने वाले थे, उनके इस शहादत दिवस को मानाने के लिए चकराता, रामताल गार्डन में हार साल 3 मई को केसरी चंद मेले का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष की भांति इस साल भी शहीद केसरी चंद मेले का आयोजन किया गया, जिसमें रंगारंग कार्यक्रम आयोजन भी किया गया। वहीं, मेले में पहुंचे लोगों ने वीर केसरी चंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

अमर शहीद केसरी चंद का जन्म 1 नवम्बर सन 1920 में जौनसार बावर के क्यावा गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में पूरी की। जिसके बाद डीएवी कॉलेज से दसवीं और बारहवीं की शिक्षा ली।  खेल कूद में कई खेलों के कप्तान भी रहे।  उनके पिता पंडित शिव दत्त उन्हें सरकारी नौकरी में जाने के लिए प्रेरित करते रहे।  इंटर की शिक्षा पूरा किए बिना ही वो 10 अप्रैल 1941 को रायल इंडियन आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए और उसी साल 1942 में ही फिरोजपुर में वायसराय कमीशन ऑफिसर का कोर्स पूरा किया।  उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध जोरों पर था।  29 अक्टूबर 1941 को उन्हें मलायी के युद्ध के मोर्चे पर भेजा दिया गया।  युद्ध के मोर्चे पर 15 फरवरी 1942 को जापानी फौज ने केसरी चंद को बंदी बना लिया।  नेता जी सुभाष चंद्र बोस के नारे ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से प्रेरित होकर केसरी चंद आजाद हिंद फौज में भर्ती हो गए थे।

आजाद हिंद फौज की ओर से लड़ते हुए इंफाल के मोर्चे पर उन्हें ब्रिटिश फौजौं ने पकड़ लिया था। जिसके बाद उन्हें दिल्ली जिला जेल में रखा गया। आर्मी एक्ट की दफा 41 के भारतीय दंड संहिता की 121 की विरुद्ध ब्रिटिश राज्य के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में 12 और 13 दिसंबर 1944 व 10 जनवरी 1945 को लाल किले में जनरल कोर्ट मार्शल में ट्राई किया गया।  3 फरवरी 1945 को जनरल सीजे आचिनलेक ने उन्हें मृत्यु दंड की सजा सुनाई।  24 साल 6 महीने की अल्पायु में केसरी चंद को 3 मई 1945 को दिल्ली जिला जेल में फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया। इसी दिन को याद करते हुए जौनसार बावर के लोगों द्वारा अमर शहीद केसरी चंद के बलिदान  और मातृभक्ति को याद किया जाता है।

यह खबर भी पढ़ें-7 मई को खुलेंगे गंगोत्री धाम के कपाट, जानिए क्या है गंगोत्री धाम की मान्यता…

यह खबर भी पढ़ें-आदर्श आचार संहिता बनी दून वासियों के लिए रोड़ा, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का काम थमा…

संवाद365/कुलदीप 

37355

You may also like