हुड़के की थाप को इस युवा ने पहुंचाया मुंबई तक,अपनी संस्कृति को बचाने के लिए कर रहा ये काम…

January 29, 2019 | samvaad365

देवभूमि उत्तराखंड जहां न जाने कितनी लोक-संस्कृतियां देश-विदेशों में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। लोकगीत कहें या जागर सभी अपने आप में एक अलग रूप लेकर लोगों में पहाड़ी संस्कृति के तौर पर समाया हुआ है, वहीं आज हम बात करेंगे पहाड़ की लोकसंस्कृति को दर्शाता एक वाध्य यत्र हुड़के की, हुड़के का पहाड़ की लोक संस्कृति, लोक महोत्सव व धार्मिक महोत्सवों में अहम स्थान है। एक ओर जहां मोडर्न ज़माने के चलते युवा इन सब चीज़ों को शर्म मानते हैं तो वहीं इसे अपनी पहचान बनाकर इसे उत्तराखंड से बाहर बड़े-बड़े शहरों में ले जाने वाले बागेश्वर निवासी मोहन चंद्र जोशी ने इसे बढ़ावा दिया।

बांसुरी व हुड़का वादन कला में निपुण भिंगड़ी गांव निवासी मोहन चंद्र जोशी बीते कई सालों से इस विधा से जुड़े हुए हैं। विभिन्न मंचों में बांसुरी व हुड़का वादन से लोगों का दिल जीत चुके मोहन ने पहाड़ की इस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए खुद ही हुड़का बनाने का बीड़ा भी उठाया है।

हुड़के की थाप, उसके महत्व और उसकी उपयोगिता को समझाते हुए मोहन अभी तक 20 से अधिक हुड़के बड़े शहरों में पहुंचा चुके हैं। बताया कि एक हुड़के को बनाने में करीब एक महीने का समय लगता है। इसकी कीमत तीन हजार रुपये है। बताया कि उनकी मुहिम रंग लाई तो जल्द ही दिल्ली व मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी बागेश्वर के हुड़के की थाप सुनाई देगी।

लोक कलाकार मोहन जोशी बताते हैं उनका अगला लक्ष्य किसी फिल्म के माध्यम से हुड़के को बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री तक ले जाने का है। बताते हैं कि इस बाबत मुंबई में कई कलाकारों के वह संपर्क में हैं।

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संवाद 365/संध्या सेमवाल

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